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21 फ़रवरी 2012

लव-मंत्र : धीरे-धीरे पकता है प्यार - मानसी




क्या आपने कभी यह उम्मीद या कल्पना की है कि बच्चा पैदा होते ही उछलता-कूदता खड़ा हो जाए। अपना काम खुद करने लगे। आपके साथ गुफ्तगू करने लगे। उसे आग से जल जाने की समझ हो और गहरे पानी में छलांग लगाने का क्या अंजाम होगा यह भी खबर हो। कड़वी सच्चाई को बयां करने की एवज में क्या जोखिम उठाना पड़ सकता है, इसका भी अनुमान हो।

आप कहेंगे ऐसी कोरी कल्पना, केवल भूत-पिशाच की कहानियों में रोमांचित करने के लिए की जा सकती है पर शिशु तो अपनी उम्र के अनुसार ही बड़ा होता है। आत्मनिर्भर बनने तक उसे मनुष्य की सहायता की जरूरत होती है। उसे जीवित रहने के लिए एक अच्छा पालक चाहिए ही होता है। सबसे बड़ी और अहम बात उसे चलने-फिरने, खाने-पीने और खतरों से बचना सीखने के लिए एक विशेष उम्र की दरकार होती है।

शायद आपने कभी विचार किया है कि रिश्तों को भी समझदार बनने के लिए एक उम्र की जरूरत होती है। लड़खड़ाता व गिरता रिश्ता एक उम्र पाकर ही संभलकर मजबूती से खड़ा होता है। किसी को पसंद करना, दोस्त बनाना और दोस्ती को प्यार में बदलने के लिए भी समय की जरूरत पड़ती है। प्यार होते ही कोई यह समझ बैठे कि वे दोनों अब एक-दूसरे का हर तेवर व मिजाज समझते हैं, यह नादानी होगी। जो यह नादानी करेगा वह समय-समय पर दुख व अवसाद के भंवर में डूबने को मजबूर होगा।


ऐसे ही अवसाद से डूबने व उबरने को अभिशप्त है रागिनी (बदला हुआ नाम)। रागिनी पिछले चार वर्षों से युगल (बदला हुआ नाम) को प्यार करती है पर आज भी युगल के बारे में ठीक या पक्के तौर पर उसके मन का कोई अनुमान नहीं लगा पाती है। उससे एक जैसे व्यवहार की अपेक्षा नहीं कर पाती है।

उसे महसूस होता है उसके प्रेम पर भी युगल को शायद पूरा भरोसा नहीं है और वह खुद भी उस पर बिल्कुल अपनों की तरह भरोसा नहीं कर सकती है। वह इस रिश्ते में भावनाओं के उतार-चढ़ाव से थक चुकी है। वह तटस्थ व दूरी बनाए रखना चाहती है पर अपनी भावुक प्रवृत्ति के कारण उससे संभव नहीं हो पाता है।

रागिनी जी, यूं तो दो लोग एक ही रिश्ते को बनाते और जीते हैं पर दोनों की जरूरतों, गंभीरता, समझ व शिद्दत में काफी फर्क हो सकता है। रिश्ते की एक उम्र होकर भी दोनों की परिपक्वता की उम्र भिन्न हो सकती है। अपनी आवश्यकता के अनुसार आप एक-दूसरे से अपेक्षा करते हैं इसलिए एक ही व्यवहार बार-बार दोहराए जाने पर भी आप उसे सीखना नहीं चाहते हैं। जिसके रिश्ते का आधार भावना होती है उसके लिए व्यावहारिक बनना या दूरी बनाए रखना मुश्किल होता है। जो साथी आकर्षण व समय बिताने को बुनियाद बनाता है उसके लिए मनचाहा व्यवहार करना आसान होता है।

समझदारी का यही तकाजा है कि समय बीतने के साथ-साथ हर मनुष्य को यह सीख जाना चाहिए कि बहुत सारी कही जाने वाली बातों का कोई अर्थ नहीं होता है। हर बात को दिल से लगाएंगे और उसे जीवन में रूपांतरित होता देखना चाहेंगे तो निराशा ही हाथ लगेगी क्योंकि एक तो बहुत कुछ संभव नहीं होता, दूसरा सामने वाला कितना गंभीर है वह भी एक महत्वपूर्ण बिंदु है।

ND
कई बार आप अपने मन पर इतना भरोसा करते हैं कि उसे सही साबित करने के लिए दूसरे पर भरोसा करते जाते हैं। आपको लगता है कि आपका मासूम व सच्चा मन कैसे गलत हो सकता है। जैसे एक बच्चा जान-पहचान वालों बड़े की चिकनी-चुपड़ी बातों पर भरोसा किए बिना नहीं रह पाता है चाहे उसके साथ कुछ भी अनहोनी घटने वाली हो, ठीक उसी प्रकार कुछ लोग अपने रिश्ते में कभी बड़े नहीं हो पाते हैं। वह अपने साथी पर भरोसा करते हैं, उसे दिल व जान से अपना मानते हैं और सामने वाले से समय-समय पर उदासीनता व अलगाव के कारण आहत होते हैं।

कोशिश करनी चाहिए कि रिश्ते की उम्र के अनुसार परिपक्वता लाएं ताकि रिश्ता निभाने के साथ-साथ उसका मजा लेना भी सीख पाएं। रिश्ते की उम्र में जितनी ज्यादा परिपक्वता आएगी, उतनी जल्दी लड़ाई, झगड़े, मन-मुटाव, गलतफहमियों से आप ऊपर उठ पाएंगे। कोशिश होनी चाहिए कि रिश्ते में दोनों साथी एक साथ बड़े हों ताकि शिकवे-शिकायत की अधिक गुंजाइश न हो

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