आपका-अख्तर खान

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26 फ़रवरी 2012

कोटा के विख्यात शायर शकुर अनवर की पथरीली झीलें कुछ अजब नजारा है

जी हाँ पथरीली झीलें और वोह भी कोटा राजस्थान के मशहूर शायर सकुर अनवर द्वारा लिखित गजलों का मजमुआ पथरीली झीलें जहां कहने को तो पत्थर है लिकिन उनकी खूबसूरती कश्मीर की वादियों और जन्नत सी दिखने वाली झीलों से भी ज्यादा खुबसूरत है ..हर अलफ़ाज़ में ताकत है ..लोगों को जोड़ने की ललक है और समाज को सीख देने वाली एक शिक्षक की परख है ..ऐसी नायब हस्ती शकुर अनवर का जन्म कोटा में १९५२ में हुआ उन्होंने ने उर्दू में स्त्नात्क कर उर्दू शिक्षक के रूप में अपने जीवन की शुरुआत की ..१९९६ में शुर अनवर की गजलों का मजमुआ हम समन्दर समन्दर गये ...राजस्थान साहित्य एकेडमी की मदद से मंज़रे आम पर आया .......२००६ में विकल्प के जरिये महवे सफर और फिर सेकड़ों रचनाये गजलों का प्रकाशन हुआ अआप लिखते है
उसकी आँखें नीली झीलें
प्यास लगी तो पी ली झीलें ।
शोर मचाते है जब पंछी
लगती रंग रंगीली झीलें ।
केसा पानी , केसी रंगत
किस्मत में पथरीली झीलें ।
तुमने लिखा सुखी आँखें
में लिखता रेतीली झीलें ।
अब न रहा आँखों में पानी
अब न रही शर्मीली झीलें ।
तुम सहरा में रहने वाले
दामन से क्यूँ सी लीं झीलें ।
मोसम की सख्ती से अनवर
बंटी है बर्फीली झीलें ।

प्रस्तुत करता .......अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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