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16 फ़रवरी 2012

यह बात भी थी महादेव के विष पीने की वजह!


शिव चरित्र और स्वरूप में छिपा ज्ञान उम्र के बंधन से परे हर इंसान के जीवन से जुड़े सारे भ्रम, संशय दूर करने वाला है। दरअसल, जीवन में अनेक ऐसे मौके आते हैं, जहां हमारे गुण, चरित्र, व्यक्तित्व की परख होती है। जिसमें सही और गलत के बीच फर्क समझ जीवन की सही दिशा और दशा तय करना हमारे ही हाथों में होता है। इसमें की गई चूक यश और अपयश का कारण भी बन सकती है।

इसी कड़ी में वक्त के मुताबिक मन, बुद्धि, बल, ज्ञान, वचन, समय व अनुभव का सही उपयोग कैसे यशस्वी और सफल बना सकता है? ऐसा ही सूत्र सिखाता है- शिव का नीलकंठ स्वरूप।

पौराणिक कथा है कि समुद्र मंथन से निकले हलाहल यानी जहर का असर देव-दानव सहित पूरा जगत सहन नहीं कर पाया। तब सभी ने भगवान शंकर को पुकारा। भगवान शंकर ने पूरे जगत की रक्षा और कल्याण के लिए उस जहर को पीना स्वीकार किया। विष पीकर शंकर नीलकंठ कहलाए।

यह भी माना जाता है कि भगवान शंकर ने विष पान से हुई दाह की शांति के लिए समुद्र मंथन से ही निकले चंद्रमा को अपने सिर पर धारण किया।

बहरहाल, नीलकंठ नाम से जुड़ा यह प्रसंग मात्र नहीं है, बल्कि महादेव ने ऐसा कर वाणी, मन, बुद्धि संतुलन का एक खास सबक भी दिया। जिसके मुताबिक भगवान शंकर द्वारा विष पीकर कंठ में रखना और उससे हुई दाह की शांति के लिए चंद्रमा को अपने सिर पर धारण करना इस बात की ओर संकेत है इंसान को अपनी वाणी व मन पर संयम रखना चाहिए।

खासतौर पर कठोर वचन से बचना चाहिए, जो कंठ से ही बाहर आते हैं और व्यावहारिक जीवन पर बुरा असर डालते हैं। किंतु कटु वचनों पर काबू तभी हो सकता है, जब व्यक्ति मन-मस्तिष्क पर भी काबू रखे। चंद्रमा मन और विवेक का प्रतीक है और उसे भगवान शंकर ने उसी स्थान पर रखा है, जहां विचार केन्द्र मस्तिष्क होता है।

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