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06 फ़रवरी 2012

आखिर श्रीलंका से कश्मीर क्यों आए थे बजरंग बली?


श्रीनगर से करीब 25किलोमीटर दूर तुलमुला गांव में मां खीर भवानी का पौराणिक मंदिर स्थित है। कश्मीर के मनोहर दृश्यों से युक्त यह स्थान एक पावन धाम रूप में भी विख्यात यहाँ आस पास के क्षेत्रों में अनेक मन्दिर स्थापित हैं। जिन्हें देखकर सभी लोग भक्ति भाव से भर जाते हैं यहाँ के तमाम क्षेत्रों में अनेक हिंदु मंदिर देखे जा सकते हैं, जो सैलानियों और भक्तों सभी को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। इन मंदिरों की शोभा से यहां का वातावरण और भी ज्यादा पावन हो जाता है।

हिंदु मान्यताओं के मुताबिक, रामायण काल में जब भगवान राम ने श्रीलंका पर चढाई की थी तो उस समय मां राघेन्याश्रीलंका में निवास कर रही थी। यहाँ पर स्थित यह मंदिर पौराणिक महत्व से जुड़ा हुआ है, जिसमें एक कथा अनुसार बहुत प्राचीन समय पहले रामायण काल में भगवान श्री राम जी ने अपनी पत्नी सीता जी को रावण के चंगुल से मुक्त कराने के लिए लंका पर चढाई करने का निश्चय किया।

राम जी ने अपनी सारी सेना के साथ रावण के राज्य लंका पर हमला बोल दिया और युद्ध आरंभ हो गया। कहा जाता है की उस समय देवी राघेन्या जी लंका में निवास कर रही थी। और जब युद्ध आरंभ हुआ तो उन्होंने भगवान हनुमान जी से कहा की अब वह यहाँ पर रह नहीं सकती व उनका समय समाप्त हो चुका है।


उन्होंने ही महावीर हनुमान से आग्रह किया था कि वह उन्हें श्रीलंका से बाहर हिमालय के कश्मीर क्षेत्र में जहां रावण के पिता पुलतस्य मुनी तपस्या कर रहे हैं, ले जाएं। मां राघेन्याने शिला रूप लिया। इसके बाद हनुमान उन्हें अपने कंधे पर उठाकर हिमालय पर्वत श्रृंखला में घूमने लगे। उन्होंने इसी स्थान पर मां राघेन्यादेवी को विश्राम कराया था। बाद में यह स्थान उपेक्षित हो गया। बाद में एक कश्मीरी पंडित को मां राघेन्यादेवी ने नाग रूप में दर्शन दिए और उसे इस स्थान पर लाया। जिस जगह देवी का स्थान है, वह चश्मे के बीचों बीच है। मंदिर में देवी की मूर्ति की स्थापना है। महाराजा प्रताप सिंह ने वर्ष 1912में इस मंदिर और चश्मे का पुनर्निर्माण कराया था। इसके बाद महाराजा हरि सिंह ने भी इसका जीर्णोद्धार कराया था।

ज्येष्ठ माह में शुक्लपक्ष की अष्टमी को यहाँ पर मेले का आयोजन भी होता है इस पूजा के समय दूर दूर से भक्त यहाँ पहुँचते है। अपनी मनोकामनाओं के पूर्ण होने की कामना करते हैं इस अवसर पर देवी पर दूध चढ़ाया जाता है। एक उल्लेखनीय बात यह भी है कि मंदिर के बाहर बड़ी संख्या में मुस्लिम दूधवाले इकट्ठा होते हैं जिनसे भक्त लोग दूध खरीदते हैं। वास्तव में यह उत्सव हिंदू मुस्लिम एकता का प्रतीक भी बन गया है।

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