मन का स्वभाव चंचल माना गया है। यही कारण है कि इच्छा के पूरी होने या न होने पर दूसरी इच्छा जाग जाती है। यही सिलसिला आगे चलता रहता है। लेकिन मन की यह चंचलता और अस्थिरता इंसानी स्वभाव और विचारों में दोष भी पैदा करती है। खासतौर पर तब, जबकि व्यक्ति किसी बुरी घटना से गुजरे या उपेक्षित हुआ हो।
मन की चंचलता इन दोषों को और हवा देती - बाहरी वातावरण की नकारात्मक बातें। जिससे कई अवसरों पर इंसान बुरे और निराशाजनक विचारों का शिकार होता है। जिसके चलते वह हर बात में नकारात्मक पक्ष ही ढूंढने लगता है। एक अवस्था ऐसी भी आती है, जिसमें वह बुरी सोच से मिले बुरे नतीजों से बाहर निकलने के लिए जूझता है। इसलिए समय रहते अगर इस दोष पर नियंत्रण न किया जाए तो यह गंभीर निराशा और पतन का कारण बन सकता है।
जीवन में स्वभाववश या परिस्थितियों से पैदा हुई ऐसी ही समस्या का हल हिन्दू धर्मग्रंथ श्रीमद्भगवतगीता में लिखे एक श्लोक से मिल सकता है। जानें क्या है यह बुरी और निराशाभरी सोच से बाहर आने का सूत्र -
लिखा गया है कि -
असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम्।
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते।।
सरल शब्दों में समझें तो इस श्लोक में भगवान कृष्ण ने संकेत दिया है कि बुरे और नकारात्मक विचारों को रोकने का सबसे बेहतर तरीका यही है कि हर व्यक्ति को पक्के इरादों के साथ इस बात का संकल्प करना चाहिए कि वह हर हालात, बात और विचारों में अच्छी, शुभ और सकारात्मक पक्ष को ढूंढे और स्वीकार करेंगा। जिसके लिए अभ्यास जरूरी है।
जिसके लिए अहम है कि दु:ख, कष्टों और बुरी यादों के साथ बुरे विचार, दृश्यों और बातों से दूर रहने का संकल्प रख मन को मजबूत बनाएं। शुभ और मंगल को ढूंढने का ऐसा अभ्यास ही मन को सकारात्मक ऊर्जा से भरकर हमेशा स्वस्थ्य और सबल बनाए रखेगा।
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
26 फ़रवरी 2012
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