भारत में समय-समय पर हर पर्व को श्रृद्धा व आस्था के साथ मनाया जाता है। मकर संक्रांति पर्व का हमारे देश में विशेष महत्व है। मकर संक्रांति पर्व के संबंध में गोस्वामी तुलसीदासजी ने रामचरितमानस में लिखा है-
माघ मकरगत रबि जब होई।
तीरथपतिहिं आव सब कोई।।
(रा.च.मा. 1/44/3)
ऐसा कहा जाता है कि गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर प्रयाग में मकर संक्रांति पर्व के दिन सभी देवी-देवता अपना स्वरूप बदलकर स्नान के लिए आते हैं। इसलिए वहां मकर-संक्रांति पर्व के दिन स्नान करना बहुत पुण्यदायी माना जाता है।
उत्तर भारत में गंगा-यमुना के किनारे बसे गांवों व नगरों में मेलों का अयोजन होता है। भारत में मकर संक्रांति के पर्व पर सबसे प्रसिद्ध मेला बंगाल में गंगासागर में लगता है। गंगासागर के मेले के पीछे पौराणिक कथा है कि मकर संक्रांति के दिन गंगाजी स्वर्ग के उतरकर भगीरथ के पीछे -पीछे चलकर कपिलमुनि के आश्रम में जाकर सागर में मिल गई। गंगा के पावन जल से ही राजा सगर के साठ हजार श्रापित पुत्रों का उद्धार हुआ था।
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
08 जनवरी 2012
क्यों है मकर संक्रांति पर गंगा स्नान का महत्व?
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