ऐतिहासिक स्थल वैशाली गढ़ पर इन चमगादड़ों को देखने के लिए पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है। यहां लोगों की मान्यता है कि चमगादड़ समृद्धि की प्रतीक देवी लक्ष्मी के समान हैं।
'चमगादड़ है तो कभी नहीं होगी धन की कमी'
सरसई गांव के बुजुर्ग कमेश्वर यादव का दावा है कि यह भ्रम है कि चमगादड़ अशुभ हैं। उनका दावा है कि चमगादड़ का जहां वास होता है वहां कभी धन की कमी नहीं होती।
उन्होंने कहा, "आज हमारे गांव में लोग घरों में ताले नहीं लगाते, फिर भी किसी के घर में चोरी नहीं होती। ये चमगादड़ यहां कब से हैं, इसकी सही जानकारी किसी को भी नहीं है।"
इतिहास विषय में स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रहे छात्र नीरज ने बताया, "मध्यकाल में वैशाली में महामारी फैली थी जिसके कारण बड़ी संख्या में लोगों की जान गई। इसी दौरान बड़ी संख्या में यहां चमगादड़ आए और फिर ये यहीं के होकर रह गए। इसके बाद से यहां किसी प्रकार की महामारी कभी नहीं आई।"
सरसई के पीपलों के पेड़ों पर अपना बसेरा बना चुके इन चमगादड़ों की संख्या में वृद्धि होती जा रही है। गांव के लोग न केवल इनकी पूजा करते हैं बल्कि इन चमगादड़ों की सुरक्षा भी करते हैं। यहां ग्रामीणों का शुभकार्य इन चमगादड़ों की पूजा के बगैर पूरा नहीं माना जाता।
वैज्ञानिकों का भी कहना है कि चमगादड़ों के शरीर से जो गंध निकलती है वह उन विषाणुओं को नष्ट कर देती है जो मनुष्य के शरीर के लिए नुकसानदेह माने जाते हैं।
यहां के ग्रामीण इस बात से खफा हैं कि चमगादड़ों को देखने के लिए यहां सैकड़ों पर्यटक प्रतिदिन आते हैं लेकिन सरकार ने उनकी सुविधा के लिए कोई कदम नहीं उठाया है।
सूख गया था तालाब और मर गए थे 200 चमगादड़
ग्रामीणों ने बताया कि पिछले वर्ष वैशाली गढ़ पर स्थित एक तालाब सूख गया था जिस कारण 200 से ज्यादा चमगादड़ मर गए, तब क्षेत्र के समाजसेवियों ने यहां के तालाब में पानी भरवाया जिससे चमगादड़ों की जान बच सकी।
पर्यटक जैन धर्मावलम्बी डॉ जे.के. प्रसाद ने बताया कि पीपल के चार पेड़ों पर इतनी बड़ी संख्या में चमगादड़ों का वास न केवल अभूतपूर्व है बल्कि मनमोहक भी है लेकिन यहां साफ -सफाई और सौंदर्यीकरण की जरूरत है।
हाजीपुर के प्रखंड विकास पदाधिकारी कुमार पटेल ने कहा कि इस स्थल की साफ -सफाई और सौंदर्यीकरण के लिए वरिष्ठ अधिकारियों के साथ पत्राचार किया गया है।
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