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31 जनवरी 2012

सिर्फ सुविधाओं से नहीं आते बच्चों में संस्कार, ये भी जरूरी है...


गृहस्थी में जो काम सबसे मुश्किल होता है, वह है संतानों को संस्काररी बनाना। अक्सर लोग ये शिकायत करते हैं कि हम कितनी भी सुविधाएं और साधन जुटा दें, बच्चों पर कितना ही स्नेह लुटा दें लेकिन फिर भी कहीं न कहीं ये लगता है कि बच्चों में वे संस्कार नहीं हैं जो हम उन्हें देना चाहते थे।

बच्चों ने हमारे लाड़-प्यार का ज्यादा फायदा उठाया।

वास्तव में चूक हम से होती है, दोषारोपण हम संतानों पर करते हैं। संतानें हमारे जीवन की पूंजी हैं, इन्हें कैसे बड़ा किया जाए ये हमारे हाथ में होता है। ये बात पूरी तरह गलत है कि बच्चों को संस्कारी और योग्य बनाने के लिए ज्यादा से ज्यादा संसाधनों और पूंजी की जरूरत होती है।

अभाव में भी संतानों को योग्य बनाया जा सकता है। एक तरह से देखा जाए तो सिर्फ सुख ही नहीं, कभी-कभी हमें बच्चों को थोड़े अभाव में भी रखना चाहिए। तभी उन्हें जीवन के मूल्य का पता चलता है।

महाभारत में दो तरह की संतानें हैं। पहली कौरव जो पूरे जीवन राजमहलों में रहे, सुविधाएं भोगीं। दूसरी पांडव जिनका जन्म और लालन-पालन जंगल में हुआ। पांडव और माद्री के देह त्यागने के बाद कुंती ने पांडवों को जंगल में अकेले पाला। वो सारे संस्कार दिए जो कौरवों में राजकीय सुविधाओं के बावजूद नहीं थे।

दुर्योधन और उसके ९९ भाई, सभी धूर्त और कुसंस्कारी निकले। लेकिन युधिष्ठिर और उसके चारों भाई सभी धर्मात्मा थे। कुंती ने अकेले उनको वो संस्कार दिए जो कौरवों को महल में भीष्म सहित सारे कौरव परिजन मिलकर भी नहीं दे पाए।

अगर आप ये सोचते हैं कि सुविधाओं से बच्चों में संस्कार आते हैं तो यह गलत है। संस्कार हमारे विचारों से आते हैं। हम हमेशा सिर्फ सुविधाओं की ना सोचें, कभी-कभी उन्हें अभावों में भी रखने का प्रयास करें लेकिन अभावों में सुविधाओं के स्थान पर आपका प्यार और संस्कार साथ होने चाहिए। फिर कभी संतानें भटकेंगी नहीं।

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