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19 जनवरी 2012

बहुत प्राचीन है ये धरोहर, अब इसे बचाने में जुटा पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग

पटना। बिहार के गौरवशाली इतिहास और आधुनिक पटना की पहचान बने गोलघर की मरम्मत 226 साल बाद हो रही है। इसके पूर्वी और दक्षिणी दरवाजे के ऊपर दीवारों पर पड़ी लंबी व खतरनाक दरारों को सुर्खी, चूना, गुड़ और गोंद से भरा जा रहा है। मरम्मत में लगी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की टीम गोलघर को ऐतिहासिक बनाए रखने के लिए किसी नए तत्व का इस्तेमाल नहीं कर रही। यहां तक कि दरारों को भरने के लिए निकाली जा रही ईंटों और पुरानी सुर्खी को पुन: इस्तेमाल में लाया जा रहा है। विशेषज्ञों को दो वर्षो में इसकी मरम्मत कर देनी है। इसके लिए राज्य सरकार ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को एक करोड़, 38 लाख, 55 हजार रुपये का भुगतान किया है।
पत्थरों से बना है शिखर
गोलघर की मरम्मत के लिए शिखर से नींव तक का प्लास्टर हटाया गया। इसी दौरान पता चला कि शिखर पर लगभग तीन मीटर तक ईंट की जगह पत्थरों का प्रयोग किया गया है।
कमजोर हुई राज्य संरक्षित स्मारक की नींव
गोलघर को 1979 में राज्य संरक्षित स्मारक घोषित किया गया। 1786 में निर्मित गोलघर की 12 फीट 4 इंच चौड़ी नींव कमजोर हो गई है। पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीक्षण पुरातत्वविद् डॉ. संजय कुमार मंजुल ने बताया कि सरकार ने 226 वर्षो तक अपेक्षित ध्यान नहीं दिया। स्मारक के चारों ओर बढ़ी आबादी और सड़कों के निर्माण से स्मारक के आसपास जल-जमाव होता रहा। भवनों के निर्माण के दौरान हुए कंपनी से भी गोलघर की नींव व दीवारें प्रभावित हुईं।
अनाज रखने के लिए बनाया गया था
अंग्रेजों ने गोलघर का निर्माण अनाज रखने के लिए किया था। अनाज का प्रयोग आपातकाल में किया जाता। 1770 के आपदा में लगभग एक करोड़ लोग भुखमरी के शिकार हुए तो गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग ने गोलघर के निर्माण की योजना बनाई। इंजीनियर जॉन गेस्टीन ने 20 जनवरी 1784 में निर्माण शुरू कराया और 20 जुलाई 1786 को पूरा कर दिया। इसके शीर्ष पर दो फीट 7 इंच व्यास का छिद्र अनाज डालने के लिए छोड़ा गया था जिसे बाद में भर दिया गया।
स्थापत्य कला का है अद्भुत नमूना
गोलघर स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है। इसके निर्माण में कहीं भी स्तंभ नहीं है। गुम्बदाकार आकृति के कारण इसकी तुलना 1627-55 में बने मोहम्मद आदिल शाह के मकबरे से की जाती है। 142 फीट व्यास का यह मकबरा भारत का सबसे बड़ा गुंबद है। गोलघर के अंदर एक आवाज 27 बार प्रतिध्वनित होती है।

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