आपका-अख्तर खान

हमें चाहने वाले मित्र

30 जनवरी 2012

निधीश त्यागी : बच्चों को तो बख्श़ दो!


गणतंत्र दिवस का इससे बड़ा मज़ाक और नहीं हो सकता था। मध्य प्रदेश के देवास जिले के सरकारी आयोजन में वहां के नगर निगम ने जिस झांकी पर इनाम जीता, उसमें आठ साल का बच्चा खुले में एक शॉवर के नीचे आधे घंटे से ज्यादा खड़ा रहा। सिर्फ निकर पहने इस कांपते बच्चे को देखते हुए गर्म कपड़ों में हंसते हुए साहब लोग तालियां बजाते रहे। देवास के कलक्टर उनमें से एक थे। अगर कोई बच्चे की तकलीफ़ देख कर ऐतराज न करता तो पता नहीं इस बच्चे को कितनी देर नगर निगम के पानी विभाग की अद्भुत क्षमता की नुमाइश करने के लिए 13 डिग्री सेल्सियस तापमान में ठिठुरते रहना पड़ता। गणतंत्र दिवस के इस घटिया मज़ाक और संवेदनहीनता की इस मिसाल पर अगर अभी तक किसी को जिम्मेदार नहीं माना गया है और कोई जवाबदेही तय नहीं हुई है, तो जाहिर है बुनियादी तौर पर ही हम सबके साथ कुछ गलत है। जैसा कि इस खबर से साफ हो जाता है, देवास की महापौर महोदया पहले ही इस वाकये से अपना पल्लू झाड़ चुकी हैं। किसी ने सोचा नहीं? किसी को गुस्सा नहीं आया? तरस भी नहीं! और तो और ऐसे बेवकूफाना आइडिया को इनाम से भी नवाज़ दिया गया। क्या कलक्टर, मेयर और इनाम देने वाले गणमान्य लोग खुद इस शॉवर के नीचे खड़े होकर देश का गणतंत्र दिवस मनाना पसंद करते? क्या वे अपने बच्चों से ऐसा करवाते और ऐसे ही तालियां बजाते, जैसे वे इस मौके पर बजाते देखे गए? क्या हमारा तंत्र हमारे गण की ऐसी भयानक और इनामी झांकी निकालेगा? क्या शर्म नाम की कोई चीज़ सरकार में बची है? अगर होती तो अब तक उस तमाशे के मजे लूटने वाले अफसर, नेता और कारिंदे इस आठ साल के बच्चे से सार्वजनिक माफी मांग चुके होते। बच्चे कहीं और किसी के भी हों उनका बुरा कोई नहीं चाहता। और किसी भी शिष्ट समाज की संरचना इस बात से तय होती है कि वह अपने बच्चों से कैसा बर्ताव करता है। एक और मिसाल गुजरात के अमरेली की है, जहां एक पूर्व सांसद की मौजूदगी में दो साल के जय और जिया की सगाई करवा दी गई। सांसद की चिंता है कि लेउवा पटेल समाज में लड़कों के मुकाबले लड़कियों का अनुपात काफी कम (750) है। वे दो साल के बच्चे हैं– एक बात है, तिस पर जय की मां जया की बुआ भी है। वैसे कई धर्मों और उप जातियों में इस तरह की शादियों का चलन है, पर लेउवा पटेल समाज के ठेकेदार दो साल की बच्ची पर उस अनुपात को ठीक करने का ठीकरा फोड़ रहे हैं, जिसके लिए वे सब खुद जिम्मेदार हैं। एक पुरुष प्रधान समाज पहले तो बेटियां चाहता नहीं, फिर ऊपर से अपनी गलतियों का ठीकरा बच्चियों पर फोड़ता है। और यह सब भी समुदाय की तरक्की के नाम पर। जैसे हरियाणा में ऑनर किलिंग को लेकर सियासी हस्तियों में सन्नाटा है, शायद अमरेली में भी होगा। जया जब बड़ी होगी, और जय से उसकी सगाई शादी में बदल जाएगी, तब क्या वह बेटी पैदा करना चाहेगी? वह बेटी जिसका बचपन और आज़ादी छीन कर नियति और तकदीर दो साल की उम्र में ही तय कर दी जाएगी। दो साल की बच्ची तो जानती भी नहीं होगी कि उसकी सगाई हो गई है। और जब वह जान जाएगी, तो क्या एक सामान्य जीवन जी पाएगी? क्या वह भी छह करोड़ लोगों में शामिल होगी, जिन्हें अपने गुजरात पर गर्व है? लेउवा पटेल समाज पता नहीं किस परम्परा, किस मजबूरी और किस बहाने से इस मज़ाक को संजीदगी से लेने पर तुला हुआ है! जो समाज अपनी दो साल के बच्चों को ज्यादतियों से नहीं बचा सकता, वह पता नहीं अपनी तरक्की और खुशहाली का रास्ता कैसे बना पाएगा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...