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20 जनवरी 2012

तो क्या ये ठंड हिमयुग के शुरुआत की आहट है?

नई दिल्ली। भारत में मार्च के महीने से गर्मी शुरू हो जाती है लेकिन मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक इस साल पूरे मार्च तापमान सामान्य से कम रहने वाला है। मार्च में भी सर्दी रहेगी। इस साल देश में बर्फबारी ने रिकॉर्ड तोड़ दिया। कश्मीर, हिमाचल या फिर उत्तराखंड के मैदानी इलाके, सभी जगह बर्फ ऐसी पड़ी कि लोग हैरान रह गए।

ठंड से सिर्फ उत्तर भारत ही नहीं ठिठुर रहा दक्षिण में भी ऐसी सर्दी पड़ी जैसी पिछले 100 साल में नहीं पड़ी। कर्नाटक में पारा 5 डिग्री के नीचे चला गया। सभी जगहों पर पारा सामान्य से काफी नीचे है। ऐसे में सवाल उठने लगा है कि क्या ला नीना फैक्टर दरअसल बड़े बदलाव का संकेत तो नहीं। बड़ा बदलाव यानी हिमयुग की आहट।

<font color=green><b>तो क्या ये ठंड हिमयुग के शुरुआत की आहट है?</b></font>

वैज्ञानिकों के मुताबिक मौसम में हो रहे बदलाव ग्लोबल कूलिंग की तरफ इशारा कर रहे हैं। अमेरिका हो, यूरोप हो, एशिया में चीन हो या फिर भारत। हर जगह पिछले साल से बर्फबारी ने रिकॉर्ड तोड़ा है। दुबई के रेगिस्तान तक में बर्फ पड़ी, तो चीन के उत्तरी इलाकों में बर्फबारी ने पिछले साल तमाम रिकॉर्ड तोड़ दिए। इस साल अमेरिका के कई इलाकों में भी यही हाल है। तभी तो पिछले ही साल से मौसम वैज्ञानिकों ने हिमयुग के आहट की बात शुरू कर दी। साल 2012 में जिस तरह से बर्फबारी हुई है वो इस बदलते मौसम की ओर इशारा जरूर कर रही हैं। जनवरी की शुरुआत में पहाड़ों को लांघकर बर्फ ने मैदानों को भी सफेद कर दिया और हर तरफ सिहरन फैला दी।

पंजाब तक में बर्फबारी हुई, पठानकोठ में 4 इंच बर्फबारी रिकॉर्ड की गई।

- जम्मू के कठुआ और रामबन जैसे इलाकों में भी सालों बाद बर्फबारी हुई।

- हिमाचल के निचले इलाके चिंतपूर्णी, चामुंडा और हमीरपुर जैसी जगहों में 70 साल बाद बर्फबारी देखने को मिली।

- मसूरी में तो बर्फबारी आम है पर इसबार देहरादून जैसे निचले इलाकों तक बर्फ पहुंच गई।

हिमयुग के कारण

हिमयुग यानी वो दौर जब पृथ्वी की सतह और वायुमंडल का तापमान घट जाता है, जिससे हिम की परतों और ग्लेशियरों का विस्तार होता है। आमतौर पर ये माना जाता है कि पिछला हिम युग कोई 25 लाख 80 हजार साल पहले शुरू होकर 11 हजार साल पहले खत्म हुआ। हिमयुग के कई कारण माने जाते हैं।

- वातावरण में मौजूद गैसों के अनुपात में बदलाव।

- पृथ्वी के सूर्य की परिक्रमा के रास्ते में बदलाव।

- टेक्टॉनिक प्लेट्स के खिसकने से पृथ्वी की सतह में बदलाव आना जिसकी वजह से समुद्री धाराओं पर असर, ला नीना वगैरह इसी की पैदाइश हैं।

भारत में मौजूदा जबरदस्त ठंड, पारे का सामान्य से ज्यादा लुढ़कना और बर्फबारी की वजह वैज्ञानिक जनवरी में आर्कटिक हवाओं के तरीके में बदलाव को बता रहे हैं। दिसंबर में यूरोप में हुई जबरदस्त बर्फबारी, पारे का असामान्य तरीके से शून्य से 15 डिग्री नीचे जाना। हाल के सालों में दपनियाभर में जरूरत से ज्यादा होती बर्फबारी सब मौसम में बड़े बदलाव की तरह ही इशारा कर रहे हैं

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