पूर्व सांसद नरेश पुगलिया की अगुवाई वाली आयोजन समिति भी इस ओर ध्यान नहीं दे रही है. जिससे शहर ही नहीं बल्कि राज्य की यह अनमोल धरोहर नष्ट होने के कगार पर पहुंच गई है. इस समाधि स्थल के ठीक सामने खडी रानी हीराई की समाधि भी, आज अपने राजा की समाधि के इस हालात पर सिसकती प्रतीत होती है.
चंद्रपुर में गोंडराजाओं ने सैकडों वर्ष तक शासन किया. चंद्रपुर शहर की स्थापना भी गोंड राजा खांडक्या बल्लाड.शाह द्वारा की गई थी. जिसके 500 वर्ष से अधिक होने के उपलक्ष्य में सरकारी तथा नागरिकों के स्तर पर पंचशताब्दी महोत्सव मनाया जा रहा है. लेकिन गोंडराजाओं की इस सबसे अनमोल धरोहर की रक्षा के लिए कोई उपाय नहीं किया जा रहा है. जिससे यह प्राचीन धरोहर बदहाल हो गई है.अगर अब भी ध्यान नहीं दिया गया तो इसे जमींदोज होने से शायद ही कोई बचा पाएगा.
प्राचीन गोंड राजाओं के श्मशान घाट परिसर मेंस्थित यह समाधि स्थल फिलहाल प्रेमी जोडों का अड्डा बना हुआ है. आधुनिक 'लैला-मजनुओं ' द्वारा भी अपने प्रेम को अमर बनाने के लिए इस समाधि स्थल की दीवारों पर अपने नाम उकेरने में कोई कसर नहीं छोडी गई है. कई खिडकियां तोड दी गई हैं. देखभाल के अभाव में समाधि स्थल के गुंबद से भी पपडियां उखड.ने लगी हैं.कई जगह की कलाकृतियों को कहीं परिस्थिति ने तो कहीं आधुनिक प्रेमी जोडों ने तबाह कर दिया है. स्मारक के बाहर स्थित दीवारों की स्थिति खराब होती जा रही है.
दीवार पर लगे पत्थरों की हालत भी खस्ता नजर आ रही है. यह सब चीजें दिखाई देने के बावजूद कोई कदम नहीं उठाया जाना सबसे दु:खद पहलू है.उपलब्ध ऐतिहासिक जानकारी के अनुसार अपने पिता राजा कृष्ण शाह की मौत के बाद 1696 में 20 वर्ष की उम्र में राजा वीर शाह ने चंद्रपुर की राजगद्दी संभाली थी.
लेकिन 8 साल बाद ही 1704 में उसके 'बॉडीगार्ड' हीरामन द्वारा राजा वीर शाह की हत्या कर दी गई. उसके बाद राजा वीर शाह की पत्नी हीराई की ताजपोशी हुई तथा उन्होंने चंद्रपुर की राजगद्दी संभाली. रानी हीराई ने 1704 से 1719 तक चंद्रपुर में राज किया.
रानी हीराई ने इसी कालावधि में अपने पति राजा वीर शाह की याद में यह सुंदर तथा शानदार समाधि स्थल बनवाया था. रानी हीराई की इच्छा के अनुसार ही इसी समाधि स्थल के ठीक सामने रानी हीराई की मृत्यु के बाद उनका भी समाधि स्थल तथा स्मारक बनाया गया. जो आज भी राजा- रानी के अमर प्रेम की गवाही दे रहा है.
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