माघ मास की गुप्त नवरात्रि के चौथे दिन (27 जनवरी, शुक्रवार) की प्रमुख देवी मां कुष्मांडा हैं। देवी कुष्मांडा रोगों को तुरंत की नष्ट करने वाली हैं। इनकी भक्ति करने वाले श्रद्धालु को धन-धान्य और संपदा के साथ-साथ अच्छा स्वास्थ्य भी प्राप्त होता है।
मां दुर्गा के इस चतुर्थ रूप कुष्मांडा ने अपने उदर से अंड अर्थात ब्रह्मांड को उत्पन्न किया। इसी वजह से दुर्गा के इस स्वरूप का नाम कुष्मांडा पड़ा। नवरात्रि के चतुर्थ दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। मां कुष्मांडा के पूजन से हमारे शरीर का अनाहत चक्रजागृत होता है। इनकी उपासना से हमारे समस्त रोग व शोक दूर हो जाते हैं। साथ ही भक्तों को आयु, यश, बल और आरोग्य के साथ-साथ सभी भौतिक और आध्यात्मिक सुख भी प्राप्त होते हैं।
ध्यान मंत्र
सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च।
दधानाहस्तपद्याभ्यां कुष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
अर्थात: देवी कुष्मांडा मां दुर्गा का चौथा स्वरूप है। ऐसी मान्यता है कि इस ब्रह्मांड को मां कुष्मांडा ने मंद मुस्कान से उत्पन्न किया है। इसी वजह से इन्हें कुष्मांडा देवी के नाम से जाना जाता है। आठ भुजाओं वाली कुष्मांडा देवी अष्टभुजा देवी के नाम से भी जानी जाती हैं। इनके हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमलपुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा रहते हैं। देवी कुष्मांडा का वाहन सिंह है।
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
26 जनवरी 2012
गुप्त नवरात्रिः आयु व बल देती है मां कुष्मांडा
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