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17 जनवरी 2012

रुश्दी नहीं आएंगे, पर जिसके कारण विवाद, आ गई वह किताब!


जयपुर.राज्य सरकार भले ही प्रसिद्ध लेखक सलमान रुश्दी को जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में आने से रोकने की कोशिशों में सफल हो गई हो, लेकिन अपनी जिस पुस्तक ‘सैटेनिक वर्सेज’ के कारण रुश्दी विवादों में आए, वह जयपुर में उपलब्ध है।

तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने 1988 में इस विवादास्पद उपन्यास पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके बाद से यह पुस्तक देश में उपलब्ध नहीं है, लेकिन रुश्दी के फेस्टिवल में आने को लेकर विवाद शुरू हुआ तो उनकी यह विवादित पुस्तक जयपुर में कई जगह बिकने लगी।

इस पुस्तक की फोटो प्रति महज 200 से 350 रुपए में उपलब्ध है। अंग्रेजी साहित्य के प्रेमी कई युवाओं के पास इस पुस्तक की प्रतियां देखी गई हैं। ये इंटरनेट से डाउनलोड की गई हैं और फोटोस्टेट के जरिए एक से दूसरे व्यक्ति के तक पहुंच रही है।

‘सैटेनिक वर्सेज’ रुश्दी का चौथा उपन्यास है। यह पहली बार 1988 में अंग्रेजी में वाइकिंग प्रेस से छपा था।विदेशों में यह हार्ड बैक और पेपरबैक में उपलब्ध है। 547 पेज का यह उपन्यास छपकर आया तो इस्लामिक कट्टरपंथियों ने इसे ईशनिंदा का दोषी माना और पुस्तक की प्रतियां जलाईं।

भारत में उस समय आम चुनाव का माहौल था और इसे देखते हुए राजीव गांधी सरकार ने 1988 में इसे प्रतिबंधित घोषित कर दिया। तभी से अगर कोई इस उपन्यास की प्रति लाने की कोशिश करता है तो उसे एयरपोर्ट या बंदरगाह पर ही रोक दिया जाता है। इस उपन्यास के बाद ईरान के तत्कालीन धार्मिक नेता अयातुल्ला खुमैनी ने 14 फरवरी 1989 को रुश्दी की मौत का फतवा जारी कर दिया था।

रुश्दी के सभी कार्यक्रम रद्द

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के आयोजकों में से एक संजॉय रॉय ने भास्कर से कहा कि रुश्दी 20 जनवरी को भारत में ही नहीं आएंगे, इसलिए उनका जयपुर आ पाना संभव नहीं हो रहा है। इसके बाद रुश्दी के लिए आयोजन स्थल के दरवाजे खुले रहेंगे। आयोजक रुश्दी के आने और न आने के बारे में कुछ नहीं कह रहे हैं। लेकिन उनका नाम उन सभी कार्यक्रमों की सूची से हटा दिया है, जिनमें उन्हें शामिल होना था।


मुख्यमंत्री ने चिदंबरम को अवगत कराया

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मंगलवार को नई दिल्ली में गृह मंत्री पी. चिदंबरम से मुलाकात के बाद कहा कि हमें अभी तक आधिकारिक तौर पर रुश्दी के आने के बारे में कुछ नहीं बताया गया है, लेकिन अल्पसंख्यक समुदाय के लोग उनके जयपुर आगमन को लेकर विरोध जता रहे हैं। मैंने केंद्रीय गृह मंत्री को हालात से अवगत करा दिया है। मुझे भरोसा है कि आयोजक ऐसा कुछ नहीं चाहेंगे, जिससे फेस्टिवल प्रभावित हो। मुझे उम्मीद है कि ऐसा कुछ नहीं होगा, जिससे हालात बिगड़ें। गहलोत विधि और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री सलमान खुर्शीद से भी मिले।

सरकार का कदम सही

रुश्दी को आने से रोकने का सरकार का कदम सही है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर किसी को किसी के मजहब का मजाक उड़ाने या जज्बातों को ठेस पहुंचाने का अधिकार नहीं है।

-हबीबुर्रहमान, अध्यक्ष, उर्दू साहित्य अकादमी राजस्थान

सरकार करे फैसला

किसी भी व्यक्ति को आने देना और कानून और व्यवस्था बनाए रखना सरकार की जिम्मेदारी है। अब यह उस पर है कि वह क्या फैसला करती है।

-वेदव्यास, अध्यक्ष, राजस्थान साहित्य अकादमी

रुश्दी ही नहीं, किसी भी व्यक्ति को आने से रोकना या ऐसा माहौल बनाना गलत है। ऐसा करना लोकतांत्रिक समाज की मर्यादाओं के अनुरूप नहीं है।बहुत से कट्टरवादी या रुढ़िवादी धमकी देते हैं तो फिर सरकारें होती ही किसलिए हैं? किसी को विरोध करना है तो वह उस व्यक्ति को नहीं पढ़े, पढ़े बिना नहीं रहे तो आलोचना करे, खिलाफ लिखे, विरोध प्रदर्शन करे, बायकाट करे या फिर अदालत जाए। रोकना तो अनुचित है। -

नंदकिशोर आचार्य, साहित्यकार

किसी को भी आने से रोक दिया जाता है तो फिर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का क्या मूल्य है?हम अपने आपको लोकतंत्र कहते हैं, लेकिन मुझे तो यह सब झूठा आवरण लगता है।हमने स्वतंत्रता का मुखौटा ओढ़ रखा है।

-ऋतुराज, वरिष्ठ कवि

स्थानीय सलाहकार बरसे सरकार पर

फेस्टिवल के स्थानीय सलाहकार और साहित्यकार नंद भारद्वाज ने कहा है कि राज्य सरकार में रीढ़ की हड्डी ही नहीं है और वह हालात देखकर रंग बदलती है। केंद्र सरकार भी ऐसी ही है। ये किसी मुद्दे पर दृढ़ नहीं हैं। इन्होंने उप्र चुनावों को देखते हुए ऐसा किया है। इन्होंने यह समझने की भी कोशिश नहीं की कि आम मुस्लिम भी रुश्दी के आने से नाराज नहीं है। वह तो सिर्फ कुछ लोगों को भड़काया जा रहा है। मैंने खुद सैटेनिक वर्सेज पढ़ी है। उसमें विवादित कुछ भी नहीं है।

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