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09 जनवरी 2012

कभी भी वक्त का इंतजार नहीं करना चाहिए क्योंकि....

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नारदजी कहते हैं कि उसे एक क्षण भी व्यर्थ नष्ट नहीं करना चाहिए। भक्त के जीवन में एक-एक क्षण का भी महत्व होता है। भक्त समय की कीमत जानता है। यह उसके भौतिक सुविधाओं की बहुमूल्य निधि है, जिसका उपयोग वह भक्ति के प्रति करता है। वह यह भी समझता है कि जो क्षण बीत गया, उसे कोई भी कीमत देकर भी वापस नहीं लाया जा सकता। इसलिए वह एक-एक क्षण का उपयोग भजन करने के प्रति ही करता है। यदि कोई भक्त ऐसा नहीं करता है तो उसे करना चाहिए, क्योंकि शुभ समय की केवल बाट ही देखते रहना, कुछ साधन नहीं करना यह कोई प्रतीक्षा नहीं है।

मनुष्य का जीवन अत्यंत अनिश्चित है, कितना समय उसके पास है, कहा नहीं जा सकता। अत: उसका एक-एक पल महत्वपूर्ण है। कार्य बहुत बड़ा है। इतना बड़ा कि अनेकों जन्मों की तपस्या एवं निरंतर साधना से भी पूर्ण हो पाएगा कि नहीं, कहा नहीं जा सकता। फिर भी यह सोचते रहना कि अमुक काम पूर्ण हो जाए, अमुक परिस्थिति आ जाए तो भजन करूंगा। अपने आप को धोखा देना तथा समय नष्ट करना है।

एक और महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि आज हम अच्छे सात्विक भगवद् भक्तों की संगत में हैं जिससे हमारे मन में भी प्रभु को प्राप्त करने के लिए परम-प्रेम-रूपा भक्ति जाग्रत करने की शुभ इच्छा जाग्रत है। किन्तु, यदि हम विचार ही करते रह गए, भजन कुछ किया नहीं, केवल अनुकूल समय का रास्ता ही देखा। जब अनुकूल समय प्राप्त हुआ तो हमारे मन का विचार ही बदल गया। इसलिए उत्तम यही है कि जो भी परिस्थितियां प्राप्त हों तथा जो भी समय उपलब्ध हो एवं जो कुछ आपके पास सुविधाएं हों, उनमें जैसा भी, जितना भी भजन सम्भव हो आरंभ कर दो। यह नियम जाग्रति से पूर्व एवं पश्चात दोनों अवस्थाओं में लागू होता है।

विशेषकर भजन का स्वभाव तथा भक्ति जाग्रति का उपर्युक्त समय युवावस्था ही होता है। बुढ़ापे में जब मन का स्वभाव पक जाता है, इन्द्रियों में शिथिलता आ जाती है, उठा-बैठा भी नहीं जाता, तब क्या साधन-भजन होगा। हां, यदि युवावस्था में ही ऐसा स्वभाव तथा परिस्थितियां बन जाएं तो बुढ़ापे में भी क्रम चलता रह सकता है। अत: आधा क्षण बिगाड़े बिना भी साधन में जुट जाओ। आयु तो देखते ही देखते निकली जा रही है। दिन पर दिन तथा रातों पर रातें व्यतीत होती जा रही हैं। सूर्य उदय होता है, सायं को ढल जाता है। यह क्रम घड़ीभर के लिए भी नहीं ठहरता। इसी के साथ व्यतीत हो जाता है मनुष्य का जीवन भी। सुविधा पूर्वक तथा अनुकूल समय का भजन जैसे महत्वपूर्ण कार्य के लिए प्रतीक्षा करना उचित नहीं।

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