देश में 18 से 25 साल के करीब 12 करोड़ वोटरों का ताकतवर तबका पहले से कहीं ज्यादा संजीदा है। राजनीतिक समझ तो ज्यादा है ही, वे काफी आक्रामक भी हैं। यही वजह है कि चुनाव आयोग वोटिंग की उम्र घटाकर 16 साल करने के पक्ष में है।
पहली बार वोट डालते वक्त अलवर के 21 वर्षीय दीपक अवस्थी को लगा कि लीडरों को चुनने में अब वे भी निर्णायक भूमिका अदा कर सकते हैं। उनकी राय है कि ‘वोटिंग सबके लिए अनिवार्य होनी चाहिए। अगर कोई वोटिंग में शामिल नहीं होता है तो उसे हर तरह के सरकारी फायदे से महरूम किया जाना चाहिए।’
इंदौर में एमबीए कर रहे शिवपुरी के कुणाल दंडोतिया को सात साल पहले वोट करने का अधिकार मिला। तब से तीन बड़े चुनाव हुए, लेकिन चाहकर भी मतदान नहीं कर पाए। उनकी मांग है कि ‘यदि हमारे यहां बैंकिंग सेवा ऑनलाइन है तो वोटिंग में क्या दिक्कत है और क्यों? हम छुट्टी लेकर वोट देने नहीं जा सकते।’
1988 में 18 साल के युवाओं को वोट का अधिकार मिला, लेकिन वोट डालने वाले युवा 20-25 फीसदी ही हैं। वे पुरानी पीढ़ी के वोटरों की तरह जाति, धर्म या इलाके की भावुक सोच से बाहर हैं। शहरी इलाकों में वे मोबाइल फोन व इंटरनेट से सुसज्जित, सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर एक-दूसरे के सीधे संपर्क में और देश-दुनिया की हर हलचल से वाकिफ हैं।
उत्तरप्रदेश में आइए। लखनऊ में इंजीनियरिंग के विद्यार्थी हैं 21 वर्षीय मोहम्मद आमिर। इस वक्त उन्हें इन्फोसिस का यूपी में आने से इंकार सबसे ज्यादा अखर रहा है। वे इसे आंबेडकर पार्कों में अरबों रुपए पानी की तरह बहाने वाली मायावती सरकार की सबसे बड़ी नाकामी मानते हैं। आमिर ने गुस्से में कहा, ‘पढ़े-लिखे युवाओं के मन में ऐसी सरकारों को सबक सिखाने की बैचेनी है।’
आईआईटी चेन्नई से एमटेक जासमीन शाह का उदाहरण, जिन्होंने कभी वोट नहीं दिया था। बेंगलुरू की संस्था ‘जन आग्रह’ से जुडऩे के बाद 2009 में वे युवा वोटरों के लिए चर्चित रॉक बैंड कैंपेन ‘शट अप एंड वोट’ का आइडिया लेकर आए। 15 युवा साथियों के साथ इस रॉक टूर ने दिल्ली व मुंबई समेत पांच बड़े शहरों में जबर्दस्त धूम मचाई।
इस मुहिम का मकसद है पांच साल में मतदाता सूचियों में सबके नाम शामिल करना और युवाओं के वोटिंग का प्रतिशत बढ़ाना। शाह कहते हैं, ‘आज पहले से ज्यादा युवा लोकतंत्र के सबसे प्रमुख निर्णायक हैं। उन्हें पोलिंग बूथ तक प्रेरित करने के लिए संगीत से बेहतर और क्या माध्यम हो सकता था?’
किसी को ताज्जुब नहीं हुआ जब अन्ना हजारे के आंदोलन में देश के कोने-कोने में सबसे ज्यादा युवा चेहरे दिखे। आक्रामक लेकिन अनुशासित। अहमदाबाद में रिसर्च फाउंडेशन ऑफ गवर्नेंस इन इंडिया (आरएफजीआई) की कार्यकर्ता कानन ध्रू कहती हैं, ‘युवा वोटर स्वच्छ राजनीति और साफ-सुथरे नेता चाहते हैं, जो कुशल लीडर्स की तरह असरदार बदलाव ला सकें। कोरे भाषण व आश्वासन नहीं चाहिए।’
ऐसा भी नहीं है कि जो सामने हो, युवा उसे अंधे जोश में अपना रहे हों। पिछले विधानसभा चुनावों में कोलकाता में वामपंथी झुकाव वाली संस्था ‘तुनीर’ ने युवाओं को टारगेट कर नौ गीतों का एलबम जारी किया। इसमें कम्युनिस्ट सरकार की ‘कामयाबियों’ के गुण गाए गए। हुगली में खेतीबाड़ी से जुड़े 20 साल के मुजीब एहसान ने कहा, ‘तुनीर वालों ने हमें नासमझ मानकर यह प्रयोग किया। हमने फैसला एवीएम के बटन दबाकर सुनाया।’
तेजतर्रार युवाओं के ये तेवर देख मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाय कुरैशी कहते हैं, ‘वोटिंग की उम्र 16 साल हो जानी चाहिए। हम तो सरकार से सिफारिश करने को तैयार हैं।’
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
01 जनवरी 2012
सरकारों को सबक सिखाने की इस कदर है बेचैनी
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