
पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहते हैं। इस एकादशी का महत्व पुराणों में वर्णित है। इस बार यह एकादशी 5 जनवरी, गुरुवार को है। इस व्रत को करने से योग्य पुत्र की प्राप्ति होती है। पुत्रदा एकादशी का महत्व स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को बताया था। उसके अनुसार-
इस चर और अचर संसार में पुत्रदा एकादशी के व्रत के समान दूसरा कोई व्रत नहीं है। इस एकादशी पर भगवान नारायण की पूजा की जाती है। पुत्रदा एकादशी के दिन नाम-मंत्रों का उच्चारण करके फलों के द्वारा भगवान नारायण का पूजन करें। नारियल के फल, सुपारी, नींबू, अनार, आँवला, लौंग, बेर तथा विशेषत: आम के फलों से भगवान नारायण की पूजा करें। इसी प्रकार धूप दीप से भी भगवान की अर्चना करें।
पुत्रदा एकादशी की रात्रि को वैष्णव पुरुषों के साथ जागरण करना चाहिए। जागरण करने वाले को जिस फल की प्राप्ति होति है, वह हजारों वर्ष तक तपस्या करने से भी नहीं मिलता। जो पुत्रदा एकादशी का व्रत करते हैं, वे इस लोक में पुत्र पाकर मृत्यु के पश्चात् स्वर्गगामी होते हैं। इस माहात्म्य को पढऩे और सुनने से अग्निष्टोम यज्ञ का फल मिलता है।
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