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10 दिसंबर 2011

अब भी आम आदमी पुलिस की मदद लेने से कतराता है


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जयपुर/जोधपुर.मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि समय बदल चुका है, फिर भी आम आदमी पुलिस की मदद लेने से कतराता है। अंग्रेजों के समय में पुलिस की दमनात्मक भूमिका के इतिहास और नकारात्मक प्रचार के कारण पुलिस और आमजन के बीच बढ़ी दूरी को पाटने की आवश्यकता है।

ऐसे में पुलिस की छवि को सही तरीके से पेश नहीं करने के कारण भी कई बार पुलिस के सकारात्मक काम आमजन के सामने नहीं आ पाते। प्रशिक्षु बैच के अफसर फील्ड में पूरी मुस्तैदी और सकारात्मक सोच के साथ आमजन में पुलिस की संवेदनशील, मददगार और मानवीय छवि पेश करें।

गहलोत शनिवार को राजस्थान पुलिस अकादमी के ग्राउंड में राजस्थान पुलिस सेवा के 44वें प्रशिक्षु बैच के दीक्षांत समारोह में बोल रहे थे। पुलिस बल में प्रशिक्षण की अहम भूमिका है।

अपराधों पर नियंत्रण के लिए यहां दिया गया आधुनिक प्रशिक्षण वास्तव में पुलिस विभाग की रीढ़ है। राज्य सरकार पुलिस विभाग को प्रशिक्षण देने और उनकी सभी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है। यही कारण है कि 13वें वित्त आयोग में प्रशिक्षण के लिए 100 करोड़ रुपए दिए गए।

साइबर अपराध कितनी तेजी से बढ़ रहे हैं, ऐसे में उन पर कड़ाई से काबू पाने की जरूरत है। समारोह में गृह राज्य मंत्री वीरेंद्र बेनीवाल, प्रमुख गृह सचिव जीएस संधु, डीजीपी हरीश चंद मीना सहित कई आला पुलिस अफसर मौजूद थे।

नई घोषणाएं:

मुख्यमंत्री ने राजस्थान पुलिस सेवा (प्रशिक्षु) ऑल राउंड बेस्ट के लिए मुख्यमंत्री गोल्ड मैडल और 10 हजार रुपए नकद इनाम देने के साथ पुलिस अकादमी कैंपस में स्थित डिस्पेंसरी को अस्पताल में क्रमोन्नत करने और अकादमी स्थित शहीद स्मारक का विकास करने की भी घोषणा की।

चार लाइन की खबर से आया राज्य में आरटीआई कानून

मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रिंट मीडिया की अपनी विश्वसनीयता है। आरटीआई पर कानून बनाने का विचार चार लाइन की खबर पढ़कर आया था। अरुणा राय ने ब्यावर में आरटीआई कानून बनाने की मांग को लेकर धरना दिया हुआ था, जब इस धरने की खबर देखी तो आरटीआई का विचार नया लगा। तब कांग्रेस विपक्ष में थी, मैं ब्यावर उस धरने में गया और अरुणा राय से बात की। तब आरटीआई का महत्व समझ में आया।

इसके बाद जब राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी तो हमने आरटीआई का कानून लागू किया। गहलोत शनिवार को आरपीए के सभागार में अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस पर राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग की ओर से ‘मानवाधिकारों के संरक्षण में मीडिया और गैर सरकारी संगठनों की भूमिका’ विषय पर हुई समूह चर्चा में बोल रहे थे।


उन्होंने कहा कि मानवाधिकार की अवधारणा पश्चिमी देशों की देन नहीं है। सदियों पुरानी हमारी संस्कृति, संस्कार, परंपराओं, मान्यताओं, वेदों और पुराणों में मानव मूल्यों की रक्षा का भाव सदैव से ही रहा है। ऐसा माहौल बने कि प्रदेश में मानवाधिकारों का किसी भी रूप में हनन न हो। राज्य में मानवाधिकार आयोग ने गठन के बाद से अब तक 37 हजार परिवादों का निस्तारण किया,जो अच्छा संकेत है।

प्रदेश में पंजीकृत एक लाख एनजीओ, मीडिया प्रतिनिधि और मानवाधिकार कार्यकर्ता मानवाधिकार संरक्षण के लिए वातावरण बनाएं। इस मौके पर राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष पूर्व न्यायाधिपति राजेश बालिया और आयोग के सदस्य एम.के. देवराजन ने भी विचार व्यक्त किए।

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