इस्लाम में मुहर्रम का माह खुदा की इबादत व इमाम हुसैन की शहादत की याद करने का है। मुस्लिम धर्मावलंबी इस माह की नौ व दस तारीख को रोजे भी रखते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार इन दिनों में रोजा रखने से बीते समय के सभी गुनाहों से छुटकारा मिलता है।
इस्लाम के मानने वाले मुहर्रम माह की दस तारीख को शहीदों की याद के रूप में तथा इस्लाम के प्रति अपने समर्पण को दर्शाते हैं और साथ ही यह दुआ भी करते हैं कि रब उन्हें भी नेकी, समर्पण व कुर्बानी के जज्बे से सराबोर रखे। जंग को हराम समझे जाने वाले इस माह को शहरूल्लाह व शहरूल अम्बिया भी कहा जाता है।
फारूक-ए-आजम के दौर से इस माह को हिजरी साल का पहला महीना मुकर्रर किया गया है। इस माह में अल्लाह तआला ने इन्सानियत को वजूद बख्शा है। इस्लामी ग्रंथों के अनुसार चार माह जिलकअदा, जिलहिज्जा, मुहर्रम व रजब को हुरमत वाले महीने कहा जाता है।
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
01 दिसंबर 2011
मुहर्रम: रोजे भी रखते हैं इस पवित्र महीने में
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)