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29 दिसंबर 2011

बिना मूल्य चुकाए कोई सफलता या लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकता


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सफलता उसे मिलती है, जो अपने कर्म और कर्तव्य के लिए ईमानदार है। जो, महत्वपूर्ण जिम्मेदारी हाथ में होते हुए भी दुनियादारी में उलझकर अपने कर्तव्यों की ओर से नजरें मोड़ लेता है, उसे असफलता ही मिलती है। भले ही हमारे पास सामथ्र्य हो, शक्ति हो लेकिन फिर भी उसका उपभोग और आनंद हमें नहीं मिल पाता।

महाभारत में चलते हैं। धृतराष्ट्र जन्म से अंधे थे। हस्तिनापुर का राजा बनने का पहला अधिकार उनका था लेकिन अंधा होने के कारण उनके छोटे भाई पांडु को राजा बनाया गया। पांडु को एक ऋषि का शाप मिला जिससे उन्हें राजमहल छोड़कर जंगल में जाना पड़ा। नतीजतन धृतराष्ट्र को उनके प्रतिनिधि के रूप में बैठाया गया।

पांडु की असमय मृत्यु के कारण धृतराष्ट्र ही स्थायी राजा हो गए। इसके बाद ही उनका पतन शुरू हो गया। उनके राजा बनते ही सारे पुत्र अनियंत्रित हो गए। कुछ समय तक धृतराष्ट्र ने अच्छे से शासन चलाया भी लेकिन फिर वो पुत्र मोह में फंस गया। दुर्योधन के लिए उनका प्रेम इतना बढ़ गया कि वो राजा होते हुए भी खुद कोई निर्णय नहीं ले पाते थे।

इसका परिणाम हुआ महाभारत युद्ध। अगर धृतराष्ट्र अपने पुत्र के मोह में नहीं फंसते तो शायद इतिहास में उनका नाम कुछ अलग अर्थों में लिया जाता। सिर्फ उनके मोह और पुत्र प्रेम के कारण आज वे एक नायक नहीं, बल्कि महाभारत युद्ध के मूल कारण के रूप में जाने जाते हैं।

कहने का अर्थ यही है कि हर सफलता कुछ त्याग और निष्ठा मांगती है। लक्ष्य जितना बड़ा हो, उसका मूल्य भी उतना अधिक होता है। अगर हम मूल्य नहीं चुका पाते हैं तो वो सफलता भी हमारे लिए नहीं होती, भले ही फिर हम शिखर पर ही क्यों ना हों। उसका श्रेय नहीं ले सकते, हां उसका अपयश जरूर भुगतना पड़ता है।

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