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12 दिसंबर 2011

सीखें, कैसे क्षमा को बनाए शांति और शक्ति का जरिया?

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व्यावहारिक जीवन के नजरिए से मन की जिन स्थितियों पर हमारी धार्मिकता और आध्यात्मिकता टिकी रहती है। उनमें आपसी मानवीय संबंध एक अहम भूमिका अदा करते हैं। किंतु आज भागदौड़ भरे जीवन में अक्सर परिवार या कार्यक्षेत्र मे आपसी संबधों में अहं, अपेक्षा या तनाव के चलते मनमुटाव व अलगाव देखा जाता है।

धर्म की दृष्टि से संबंधों में कटुता या अलगाव की टीस मानव स्वभाव में एक गुण की कमी से होती है। वह है - क्षमा या माफी। इसलिए कैसे क्षमा भाव को आसानी से जीवन में उतार शांत और शक्ति संपन्न बन रहें? जानते हैं -

धर्म के नजरिए से क्षमा एक तपस्या है और क्षमा करने वाला सही मायनों में वीर होता है। क्योंकि क्षमा भाव धर्म पालन का जरिया ही नहीं, बल्कि उसे स्थापित करने वाला भी माना गया है। इसलिए यह स्त्री-पुरुष सभी के लिये आभूषण की तरह शोभा बढ़ाने वाला भी है।

लिखा गया है कि -

क्षान्ति तुल्यं तपो नास्ति यानी क्षमा जैसा तप नहीं

दरअसल, सच्चाई और प्रेम का अभाव क्षमा में बाधक बनता है। इसलिए जरूरी है। अपने मन में दूसरों के प्रति दुर्भावनाओं, शिकायतों और कटुता को बिल्कुल जगह न दें।

मन का सदुपयोग जीवन के अहम लक्ष्यों को तक पहुंचने के लिए किया जाना चाहिये। हमें अपने संबंधों को विनम्रता और क्षमाशीलता द्वारा सहज, सरल और सुगम बनाये रखना चाहिये। इस तरह के अभ्यास से मन स्वस्थ होगा और स्वस्थ मन पर नियंत्रण आसान होगा। इसके विपरीत अगर हमारे मन में संशय, घृणा और कटुता बनी रहेगी तो मन अस्वस्थ रहेगा और उस पर नियंत्रण बहुत कठिन होगा। इसलिये क्षमा करना सीखें।

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