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26 दिसंबर 2011

क्यों किया हनुमानजी ने समुद्र पार जाने का फैसला?

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त्रेतायुग में साक्षात भगवान मनुष्यशरीर धारण करेंगे। उनकी स्त्री को राक्षसों का राजा हर ले जाएगा।उसकी खोज में प्रभु दूत भेजेंगे। उनसे मिलने पर तू पवित्र हो जाएगा। तेरे पंख उग आएंगे चिंता न करें। उन्हें तू सीताजी को दिखा देना। मुनि की वह वाणी आज सत्य हुई। अब मेरे वचन सुनकर तुम प्रभु का कार्य करो। त्रिकूट पर्वत पर लंका बसी हुई है। वहां स्वभाव ही से निडर रावण रहता है। वहां अशोक नाम का उपवन बगीचा है, जहां सीताजी रहती है। वे सोच में मग्र बैठी हैं। मैं उन्हें देख रहा हूं, तुम नहीं देख सकते क्योंकि गिद्ध हूं। गिद्ध को बहुत दूर तक का सपष्ट दिखाई देता है अब आगे....

जो सौ योजन का समुद्र लांघ सकेगा और बुद्धिनिधान होगा वही श्रीरामजी का कार्य कर सकेगा। मुझे देखकर मन में धीरज धरो। देखो मैं बिना पंख के कैसा बेहाल था। पंख उगने से मैं कितना सुंदर हो गया। पापी भी जिनका स्मरण करके भवसागर तर जाते हैं। तुम उनके दूत हो कायर मत बनो। यह बात कहकर जब गिद्ध चला गया, तब उन के मन में बहुत विस्मय हुआ।

सब किसी ने अपना-अपना बल प्रकट किया लेकिन समुद्र के पार जाने में सभी ने संदेह प्रकट किया। इस प्रकार कहकर गिद्ध चला गया, तब उन के मन में बहुत विस्मय हुआ। सभी ने अपने-अपने बल का बखान किया, पर समुद्र के पार जाने में सभी ने संदेह प्रकट किया। ऋक्षराज जाम्बवान कहने लगे-मैं अब बूढ़ा हो गया हूं। शरीर में पहले वाले बल का लेश भी नहीं रहा। अंगद ने कहा मैं तो पार चला जाऊंगा लेकिन लौटते समय के लिए हृद में कुछ संदेह है।

जाम्बवान ने कहा-तुम सब प्रकार से योग्य हो। तुम सबके नेता हो तुम्हे कैसे भेजा जाए। जाम्बवान ने हनुमान से कहा सुनो तुमने यह क्या चुप्पी साध रखी है। तुम तो पवन पुत्र हो। जगत में ऐसा कौन सा काम है जो तुम नहीं कर सकते यह सुनते ही हनुमानजी पर्वत के समान आकार के हो गए। हनुमानजी गरजते हुए बोले में इस समुद्र को लांघ सकता हूं। सहायको सहित उस रावण को मारकर त्रिकू ट पर्वत से उखाड़कर यहां ला सकता हूं। जांबवान में तुमसे पूछता हूं मुझे क्या करना चाहिए। तुम जाकर सिर्फ इतना ही काम करो कि सीताजी को देखकर लौट आओ और उनकी खबर कह दो।

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