सृष्टि का आरंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हुआ था। इस हिसाब से चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (गुड़ी पड़वा) को नववर्ष मनाया जाना चाहिए। 1 जनवरी को नववर्ष मनाना हमारी संस्कृति के लिए खतरा है। केवल प्रचार पाने के लिए ऐसी परंपरा की स्थापना करना अनुचित है। यह कहना है धर्मार्चायों व विद्वतजनों का जो अंगरेजी कैलेंडर के हिसाब से नववर्ष मनाने को अनुचित मनाते हैं।
उनका कहना है कि भारतीय धर्मशास्त्र व संस्कृति के हिसाब से नववर्ष मनाने की अपेक्षा पाश्चात्य संस्कृति की अंधी दौड़ में दौड़ते हुए 1 जनवरी को नया वर्ष मनाना हमारी संस्कृति को विकृत करने के समान है।
ज्योतिषाचार्य पं. आनंदशंकर व्यास के अनुसार धर्मशास्त्र की परंपरा व सनातन धर्म संस्कृति के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नववर्ष मनाना चाहिए। 1 जनवरी को नववर्ष मनाना तथा हिन्दू धर्म स्थलों पर रोशनी करना सनातन धर्मियों की भावना को आघात पहुंचाने जैसा है। सस्ता प्रचार पाने के लिए किए जा रहे इस कृत्य से गलत परंपरा की नींव पड़ रही है। अगर आज हमने इसे नहीं रोका तो आने वाली पीढ़ी गलत राह पकड़ लेगी।
सनातन धर्म और संस्कृति को मानने वालों के लिए चैत्र शुक्ल प्रतिपदा नववर्ष है। जो लोग 1 जनवरी को नववर्ष मना रहे हैं, वे हिन्दू धर्म व संस्कृति को विकृत कर रहे हैं। पाश्चात संस्कृति को अपनाने से आने वाली पीढ़ियों का नैतिक पतन होगा। 1 जनवरी पर प्रमुख हिन्दू धर्म स्थलों पर रोशनी करना या विशेष आरती पूजन करना अनुचित है। -आचार्य शेखर
-स्वामी दिव्यानंदजी तीर्थ कहते है कि सनातन धर्म परंपरा अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नववर्ष मनाया जाना चाहिए। इस दिन नगर में उत्सव होना चाहिए। धार्मिक स्थलों पर रोशनी होना चाहिए। 1 जनवरी को नववर्ष मनाना महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों पर रोशनी करना उचित नहीं है। इस कृत्य में धर्म स्थलों का संचालन कर रही समितियों को सहभागिता नहीं करना चाहिए।
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