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03 नवंबर 2011

यहां DJ की धुन पर निकलती है शवयात्रा, मौत पर लोग मनाते हैं खुशियां

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बांका. बिहार के बांका जिले में दर्जनों ऐसे गांव हैं जहां बुजुर्गों की मौत के बाद शोक नहीं बल्कि खुशियां मनायी जाती हैं। यह सुन कर भले ही अचरज लगे लेकिन है सच। मृतक का अंतिम संस्कर पूरे तामझाम, गाजे-बाजे और डीजे की धुन पर किया जाता है।

इन गांवों में मनाई जाती हैं खुशियां

बांका जिले के चांदन, कटोरिया, बेलहर, फूलीडूमर आदि के प्रखंडों के हरदिया, पड़रिया, कुसूमजोरी, केन्दुआर, नोनिया, मंजली, जाठाजोर, मोथाबाड़ी, पेजरपट्टा, लकरामा, पालासार, सढियारी, धोवनी, जैसरी, पत्ताबाड़ी, नोनसार, घोड़सार, भेलवा सहित ऐसे कई गांव हैं जहां यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है।

क्यों मनाई जाती है खुशियां ?

ऐसा यहां के गांव के लोगों का मानना है। ऐसा नहीं है कि बुजुर्गों की मौत के बाद शोक नहीं मनाया जाता। लाश के दाह संस्कार हो जाने के बाद श्मशान घाट से अंतिम संस्कार संपन्न कराने के बाद पूरे तेरह दिनों तक परिवार के लोग शोकाकुल रहते हैं।

ग्रामीणों के अनुसार दशकर्म के दिन शोक संतिप्त परिवार सामूहिक मुंडन करवाते हैं। इसके बाद और भी शोक से उबरने के लिए कर्मकांड कराये जाते हैं। लकरामा गांव के बुधो पासवान का मानना है कि 80 से अधिक उम्र के बुजुर्गों की शवयात्रा गाजे-बाजे या फिर डीजे की धुन पर निकाली जाती है।

तर्क है कि उस बुजुर्ग ने अपने जीवनकाल में सभी पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन किया होगा। ग्रामीणों का यह भी कहना है कि मृतक ने अपना जीवन खुशी-खुशी बिताया होगा। इसलिए उनकी विदाई भी खुशी-खुशी की जाती है।

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