जी हां यह कोई कहानी या कोरी गप्प नहीं बल्कि सच्चाई है आज यह महाश्य मसालों की दुनिया के बेताज बादशाह हैं जी हां हम बात कर रहे हैं एमडीएच मसाला कंपनी के मालिक महाश्य धर्मपाल जी की जिनका जन्म 27 मार्च 1927 को सियालकोट में हुआ था। 1933 में इन्होंने पांचवी कक्षा में ही पढ़ाई बीच में छोड़ दी थी। 1937 में महाश्य जी ने अपने पिता की मदद से अपना एक छोटा सा शीशे का बिजनेस शुरु किया उसके बाद साबुन और दूसरे कई बिजनेस किए लेकिन उनका मन उनमें नहीं लगा बाद में उन्होंने अपना पुश्तैनी मसालों का
बिजनेस शुरु किया।
27 सिंतबर 1947 में भारत बंटवारे के वक्त महाश्य जी भारत आ गए उस समय उनकी जेब में सिर्फ 1500 रुपए थे उन्होंने 650 रुपए में एक तांगा खरीदा और उसे चलाने लगे वो दो आना प्रति सवारी लेते थे। उसके बाद उन्होंने एक खोका खरीदा और उसमें अपना मसालों का बिजनेस देगी मिर्च वालों के नाम से फिर से शुरु किया। यहीं से महाश्य जी की सफलता का कारवां शुरु होता है इनकी सफलता का कोई बड़ा फर्मूला नहीं है केवल ग्राहकों के प्रति ईमानदारी ही महाश्य जी की सफलता का राज है।
महाश्य जी सिर्फ मसालों का बिजनेस ही नहीं चलाते हैं बल्कि उनके कई अस्पताल और स्कूल भी हैं। जिनमें गरीब और बेसहारा लोगों को सहारा मिलता है। 86 वर्षीय महाश्य धर्मापाल जी के एमडीएच और देगी मिर्च नाम से मसाले दुनिया भर में मश्हूर हैं देशभऱ में एमडीएच के 1000 से ज्यादा थोक और 4 लाख से ज्यादा रिटेल डीलर्स हैं। एमडीएच के 52 प्रोडक्ट 140 से ज्यादा अलग अलग पैकेटों में उपलब्ध है।
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
03 नवंबर 2011
पहले चलाते थे तांगा.. अब हैं अरबपति
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