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05 नवंबर 2011

अमन का पैग़ाम अब करने है लगा दिलों पे असर



जी हाँ अमन का पैग़ाम है ही ऐसी चीज़ जिसका असर सीधे दिलों पे हुआ करता है. इस ब्लॉग ने पिछले १६ महीनो मैं इस समाज मैं अशांति फैलाने वाले हर संभव कारणों पे नज़र डाली और लेखों के ज़रिये उनका हल तलाशने कि कोशिश की. एक इंसान दुसरे इंसान से दो तरह के रिश्ते काएम कर सकता है. की होती है एक नफरत का जो दिलों को बांटता है और दूसरा मुहब्बत का जो दिलों को जोड़ता है. आप सभी के सहयोग से अमन का पैग़ाम ब्लॉग ने मुहब्बत के रिश्ते रखने और नफरत के रिश्तों को ख़त्म करने की हमेशा कोशिश की है और करता रहेगा.

जब यह ब्लॉग शुरू किया था तो इस ब्लॉगजगत मैं जाति धर्म के नाम पे नफरत भरी पोस्ट और टिप्पणिओं का बोलबाला था. मित्रों ने कहा बड़ा मुश्किल होगा ब्लॉगजगत के ऐसे माहोल मैं अमन और शांति की बात करना.
मैं भी जानता था कि
"यह इश्क नहीं आसान बस इतना समझ लीजे ,एक आग का दरिया है और तैर के जाना है."

आज १६ महीनो बाद ब्लॉगजगत को देखें सहमती और असहमति अपनी जगह पे मौजूद है लेकिन ना वो धर्म के नाम पे नफरत भरे लेख हैं और ना ही वो भड़कती टिप्पणियां और सभी को यह समझ मैं आने लगा है कि यह अमन और शांति का रास्ता कि सबसे सही रास्ता है.

मैं उन लोगों का भी शुक्रगुज़ार हूं जो अमन का पैग़ाम ब्लॉग से हमेशा इस कारण से दूर रहे क्यों कि उनका मानना है कि यह अमन और शांति कि बातें केवल अच्छे लगने वाले उपदेश हैं और समझते हैं कि इन उपदेशों का कोई असर समाज पे नहीं पड़ने वाला. शुक्रगुजा इस लिए क्यों कि उन्होंने असहमति के बाद भी कभी अमन का पैग़ाम के खिलाफ काम नहीं किया और यह भी एक प्रकार का बड़ा सहयोग रहा.
हाँ मेरा मानना यही है कि यह उपदेश नफरत के अँधेरे मैं एक जलते हुए दिए काम काम करते हैं और जिनके दिलों मैं एक इंसान कि तरह मोहब्बत मजूद है उन्हें भटकने पे रास्ता यही उपदेश दिखाते हैं. इन उपदेशों कि मौजूदगी एक आशा कि किरण कि तरह से काम किया करती हैं.

मैं उन सभी लोगों से फिर से एक बार निवेदन करूँगा जो किसी कारणवश यहाँ आ के लेखकों का उत्साह नहीं बढ़ाते अरे भाई हम सब एक जैसे इंसान हैं . वही शरीर वही खून और इस दुनिया में एक जैसे ही दुःख और सुख के बीच ज़िंदगी गुज़ारने वाले इंसान हैं. एक बार धर्म जाती , नस्ल, इलाका और सहमती असहमति कि दीवारें गिरा के तो देखो तुम्हे भी यकीन हो जाएगा यह दुनिया बहुत ही सुंदर है . यहाँ नफरतों का कोई स्थान नहीं है क्यों कि इंसान कि फितरत ही एक दुसरे से प्रेम करने ,एक दुसरे को सहयोग देने और एक दुसरे के दुःख सुख मैं साथ देने कि हुआ करती है.

amnकल मैंने . एक पोस्ट लगी देखी डॉ अनवर जमाल साहब के ब्लॉग पे जहां उन्होंने अपने बेटे " अमन खान " की तसवीरें लगाई हुए थी . एक बाप के दिल मैं अपनी ओलाद का प्यार देख मुझे हमेशा ख़ुशी होती रही है क्यों कि यह सच्चा प्यार होता है. उनके बेटे का नाम "अमन" देख के भी ख़ुशी हुई और जब मैंने उनसे पूछा भाई यह नाम कहाँ से याद आया ? तो जवाब था आपका अमन का पैग़ाम अब ब्लोगर्स के दिलो दिमाग मैं बस चुका है. बस जब नाम रखने की बारी आयी तो यही नाम याद आ गया .
मैंने भी दुआ की अल्लाह से कि यह बच्चा बड़ा हो के इस समाज के लिए नेक काम करें, बलंद तकदीर हो और समाज मैं अमन और शांति कि कोशिशें करता रहे.
ATT00006.याद रहे जब भी कोई ग़लत काम करने उठोगे तो साथी बहुत मिलेंगे और ऐसे कामो मैं साथ देने और लेने कि लिए ना आप से आप कि जाति पूछेंगे ना धर्म ना शहर का पता लेकिन जब कोई अच्छा काम करोगे तो तुम्हारे खिलाफ भी लोग हो जाएंगे , तुम्हारी कमियां भी निकलेंगी और ज़रा ज़रा से अंतर जाति धर्म इलाका इत्यादि के नाम पे लोगों को तुमसे दूर किया जाएगा. भ्रष्ट लोगों को देखिये , शराबी और चोरों को देखिये यहाँ कोई नहीं पूछता अपने साथी से कि किस धर्म के हो लेकिन आप किसी को दान के लिए समाज मैं शांति के लिए अपना साथी बनाना चाहें तो आप को उसके बहुत से कहे या अनकहे सवालों का जवाब देना होगा और धर्म जाति का अंतर आप को एक साथ नेकी करने नहीं देगा. कोई अगर आप के साथ आ भी गया तो उसी तीसरा भड़काने कि कोशिश करेगा.


कम अक्ल या बेवकूफ तो इन गुमराह करने वालों के चक्कर मैं आ जाते हैं लेकिन समझदार हमेशा खुद से सवाल करता है क्यों पाप के रास्ते पे इंसान एक होता है और नेकी के रास्ते पे बंट जाया करता है? और इस सवाल का जवाब पाते ही वो गुमराह करने वालों कि बातों को अनसुना करते हुए समाज की बेहतरी के लिए काम करने वालों का साथ देता रहता है.

poojaपूजा जी का आज का एक लेख मुझे बहुत भा गया देखिये इतनी कम उम्र मैं कितनी बड़ी बात कह गयी और बता गयी divide and Rule पोलिसी हम को बाँट के हमारी ताक़त कम करके हम पे राज करने के लिए दुश्मनों की साज़िश रही है. आज अँगरेज़ नहीं रहे लेकिन समाज के भ्रष्ट लोग नेक इंसानों कि ताक़त को आज भी इसी पोलिसी को अपना के कमज़ोर कर रहे हैं.
क्या हम १०० साल गुलाम रहने और ज़ुल्म सहने के बाद अब भी आज़ाद होने को तैयार नहीं?

अच्छाईयाँ और बुराईयाँ तो हर इंसान मैं हुआ करती हैं. हम ग़लती यह कर जाते हैं कि किसी भी इंसान कि बुराईयाँ और कमियां पहले तलाशने लगते है और अच्चीयों को नज़रंदाज़ कर दिया करते हैं.बस एक बार खुद को बदल के देखो और हर इंसान कि अच्छाईयों पे पहले नज़र डालो फिर पाओगे कि सब तरफ प्रेम ही प्रेम फैला हुआ है.हम सभी को इस समाज के लिए अपने धर्म जाति ,भाषा इत्यादि के अंतर को भूल के एक साथ काम करना चाहिए तब कहीं जा के भ्रष्टाचार भी ख़त्म हो सकेगा और समाज मैं अमन और शांति काएम होगी.

अनवर भाई के इस "अमन" का पैग़ाम का जन्म १ अगस्त २०११ को हुआ. हमारी तरफ से उनको मुबारकबाद

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