ऐसा इसलिए हो रहा है कि क्योंकि आज अधिकारी कर्मचारियों में सरकार का कोई डर नहीं रह गया है। वे यहीं नहीं रुके, पंचायतों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि पंचायतों में कर्मचारी ही नहीं है। नीचे तो सबसे ज्यादा स्टॉफ होना चाहिए और वल्लभ भवन में सबसे कम। लेकिन हो उल्टा रहा है। इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक ऑडिटर्स ऑफ इंडिया के मप्र चैप्टर द्वारा आयोजित इस सेमीनार में गौर ने कहा कि जिस तरह से भ्रष्टाचार के मामले सामने आ रहे हैं उसमें प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री भी कटघरे में दिखाई दे सकते हैं। येद्दियुरप्पा तो पहले ही घेरे में आ चुके हैं।
गौरतलब है कि यह पहला मौका नहीं है जब गौर ने अपनी ही सरकार की आलोचना की है। इसके पहले उन्होंने कहा था कि केवल गुजरात ही ऐसा राज्य है जहां भ्रष्टाचार नहीं है। तब मध्यप्रदेश के संदर्भ में उनका कहना था कि इसकी समीक्षा मीडिया ओर जानकारों को करना चाहिए। कैबिनेट की बैठकों में भी वे सरकार को आड़े हाथ ले चुके हैं।
कहां हैं पंचायत वाले? सेमीनार तो पंचायती राज पर था, लेकिन इसमें न तो पंचायत राज मंत्री शामिल हुए और न ही पंचायत महकमे से जुड़े वरिष्ठ अफसर। तय कार्यक्रम के अनुसार पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव को मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित होना था। लेकिन उन्हें मप्र स्थापना दिवस से जुड़े कार्यक्रम में भाग लेने के लिए अपने गृह जिले सागर जाना पड़ा। ऐसे में गौर को सेमीनार के लिए राजी करना पड़ा।
आयोजकों के अनुसार सेमीनार में विभाग की प्रमुख सचिव अरुणा शर्मा को भी आना था, लेकिन वे भी नहीं आ सकी। कुछ वक्ताओं की पीड़ा तो यह थी कि सेमीनार में आए सुझावों पर तो विभागीय मंत्री ही अमल करवा सकते थे। नगरीय प्रशासन मंत्री तो ऐसा नहीं करेंगे!
तो सत्ताधारी क्या कर रहे हैं..
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे पद्मश्री से सम्मानित और मणिपुर एवं त्रिपुरा के पूर्व राज्यपाल ओएन श्रीवास्तव ने गौर द्वारा व्यवस्था को कोसने के जवाब में कहा, ‘अगर सिस्टम में कमी हैं तो वे (सत्ताधारी) क्या कर रहे हैं? जो लोग सरकार या सत्ता में हैं, उन्हें ही तो कमियां दूर करनी होंगी।’ सत्ता में बैठे हुए लोग ही कहेंगे कि सिस्टम में कमी है तो उसे दुरुस्त कौन करेगा? क्या इसके लिए जनता आएगी? यह जनता का काम नहीं है।
एक शायर की पंक्तियां सुनाते हुए श्रीवास्तव ने कहा, हम सभी (इशारा सत्ताधारियों की ओर) ख्यालों में रहते हैं कि हमें किनारे तक जाना है। लेकिन हमारी नाव में ही छेद है, तो वहां पहुंचेंगे कैसे? श्रीवास्तव जब बोलने के लिए खड़े हुए, तब तक गौर जा चुके थे।
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