सेशन जज जनार्दन व्यास ने पारित निर्णय में कहा कि आरोपी सुनील की पत्नी मृतका सीमा के बच्चे उर्वशी, रेखा और मनीष पहले अपनी माता के स्नेह से वंचित हो चुके हैं। इन बच्चों को अब पिता के जिंदा होने के सुख से वंचित नहीं किया जा सकता है।
इसके मद्देनजर अदालत ने हत्यारे पति सुनील को फांसी देने की अभियोजन पक्ष की प्रार्थना को अस्वीकार कर दिया। मंगलवार को सजा के बिंदु पर अभियोजन पक्ष की ओर से विवेक पाराशर ने कहा था कि सुनील ने विश्वास में रखकर अपनी जीवन साथी धर्मपत्नी के प्राण हरने का षड़यंत्र रचा और तीन बच्चों को माता के वात्सल्य से वंचित कर दिया।
वहीं लक्ष्मण ने एक गृहस्थी को बगैर द्वेष के षड़यंत्रपूर्वक बिखेर दिया , इसलिए दोनों को कठोरतम सजा के रूप में फांसी दी जानी चाहिए। इससे पहले मंगलवार को अदालत ने दो साल पूर्व पत्नी की हत्या के मामले में आरोपी पति जेएलएन में वार्ड ब्वाय रहे कल्याणीपुरा निवासी सुनील कुमार पुत्र मांगीलाल और उसके साथी कच्ची बस्ती माकड़वाली रोड निवासी लक्ष्मण उर्फ शाहरुख पुत्र जंवरीलाल को भारतीय दंड संहिता की धारा 302/34 के तहत दोषी ठहराते हुए सजा पर निर्णय सुरक्षित रखा था।
भूसे से बीज खोजने के समान है सत्य का अन्वेषण
सेशन जज जनार्दन व्यास ने पारित निर्णय में कहा कि बचाव पक्ष की यह दलील मानने योग्य नहीं है कि अभियोजन आरोप साबित करने में विफल रहा है। अदालत ने कहा कि सत्य का अन्वेषण उसी प्रकार से करना चाहिए जैसे भूसे के ढेर से बीज निकालना हो।
अदालत ने कहा कि अभियोजन ने जो साक्ष्य पेश की है वह खंड-खंड नहीं होकर माला के फूलों की तरह है, जो गंभीरता से मनन करने पर आपस में जुड़ी हुई प्रकट होती है। अदालत ने माना कि लक्ष्मण जहां भौतिक रूप से हत्या में शामिल था वहीं सुनील मानसिक रूप से इस कृत्य में भागीदार रहा।
इन दोनों के पदचाप यद्यपि अलग-अलग चलते दिखते हैं और उनमें दूरी भी प्रकट होती है लेकिन कदम-ब-कदम अपराध की ओर चलते हैं तथा उनके कदमों की रेखा को अभियोजन पक्ष ने बखूबी साबित किया है।
शांत मुखौटे के पीछे कातिल चेहरा
बचाव पक्ष की यह भी दलील थी कि जितने भी गवाह परीक्षित हुए हैं और जो सुनील से परिचित थे उन सभी ने उसे शांत प्रवृत्ति व पारिवारिक व्यक्ति बताया है। ऐसे में उसने साजिश रचकर पत्नी की हत्या करवाई हो यह साबित नहीं है।
अदालत ने माना कि सुनील का शांत चेहरा और व्यवहार एक मुखौटा था और असल में उसके पीछे एक कातिल छिपा था। अदालत ने माना कि सीमा की हत्या के पहले व बाद में सुनील का व्यवहार असामान्य व अत्यधिक सावधानीपूर्ण रहा।
सुनील ने हत्या के दिन अलवर गेट थानाधिकारी को रिपोर्ट देकर हत्या का शक दो लोगांे पर किया था। दूसरे ही दिन उसने पुलिस अधीक्षक को कम्प्यूटर से टाइपशुदा एक रिपोर्ट और दी जिसमें उसने उन्हीं दो लोगों पर हत्या का शक जाहिर किया।
अदालत का मानना है कि थानाधिकारी को रिपोर्ट देने के बाद उसे संतुष्ट हो जाना चाहिए था कि कार्रवाई होगी लेकिन पत्नी की मौत से दुखी होने की बजाय व चिता ठंडी होने से पहले ही उसने जिस तरह तुरंत एसपी के समक्ष रिपोर्ट पेश की यह उसके शातिराना अंदाज को बेबाक जाहिर करता है। लक्ष्मण ने जहां अपने हाथों से कत्ल किया वहीं इस कत्ल में सुनील ने दिमाग से काम किया।
यह था मामला ..
25 नवंबर 2009 को जेएलएन में कार्यरत वार्ड ब्वाय इंद्रा नगर गली नंबर 1, कल्याणीपुरा निवासी सुनील (44) ने अलवर गेट थाना पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराते हुए बताया था कि वह अपने तीन बच्चों की आंखों का चेकअप कराने जेएलएन अस्पताल गया था।
उसकी पत्नी सीमा घर पर अकेली थी। दोपहर तीन बजे बच्चों के साथ घर पहुंचने पर उसकी पत्नी डाइनिंग हॉल में मृत मिली थी। पुलिस ने जांच की तो मालूम हुआ कि कर्जे में डूबे सुनील ने ही माकड़वाली निवासी लक्ष्मण को एक लाख रुपए का लालच देकर अपनी पत्नी सीमा की हत्या कराई थी।
नैतिक बल की कमी
मुल्जिम सुनील के पड़ोसी पैट्रिक के बयान से पलटने पर अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि समाज में असहिष्णुता आ गई है और नैतिक बल की भी कमी है। भले ही पड़ोस में अपराधी रहता हो लेकिन उसके संबंध में व्यक्ति अदालत में सशपथ झूठे बयान दे देते हैं।
ऐसे गवाहों का पक्षद्रोही होना अस्वाभाविक नहीं माना जा सकता है। पैट्रिक ने घटना के बाद पुलिस को दिए बयान में सुनील के घर के बाहर लक्ष्मण का स्कूटर खड़ा होने की जानकारी दी थी। लेकिन अदालत में वह इससे मुकर गया।
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