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09 नवंबर 2011

अगर आप अपने अंदर जगाना चाहते हैं हिम्मत, तो यह करें...




भौतिक चीजों के असली-नकली होने के मापदंड स्थूल होते हैं। थोड़ी अक्ल हो तो हम पहचान सकते हैं, कौन-सी चीज सही है और कौन-सी गलत। लेकिन जब जीवन के गुणों और दुगरुणों की बात आती है और उसमें असली-नकली की पहचान करनी हो तो झंझट शुरू हो जाती है।

संसार के काम करते हुए त्याग और वैराग्य लाना कठिन हो जाता है, जबकि शांति के लिए दोनों जरूरी हैं। वैराग्य का सामान्यतया अर्थ गलत लगा लिया जाता है। आदमी तभी त्याग कर सकता है, जब उसके भीतर वैराग्य जागा हो। वरना त्याग भी एक तरह का सौदा बन जाएगा।

वैराग्य का यह अर्थ नहीं होता कि चीजों को छोड़ दें, बल्कि इसका सही अर्थ यह होगा कि उन्हीं चीजों का सदुपयोग दूसरों के हित में होता रहे। जितना हम दूसरों को सही लाभ पहुंचा सकेंगे, उतना ही हमारे वैराग्य और त्याग का मतलब सही होगा। इसलिए कहते हैं अपने भीतर थोड़ी वैराग्य की वृत्ति होनी जरूरी है। बिना वैराग्य जागे हम अपने भीतर का जो भी रूपांतरण करना चाहेंगे, वह नकली होगा।

असली सद्गुण अपनाने के लिए साहस की जरूरत होती है। जब तक भीतर वैराग्य नहीं होता, साहस नहीं जागेगा। वैराग्य का अर्थ है छोड़ने की शक्ति। पकड़ने की चाह भय पैदा करती है और छोड़ने की इच्छा ताकत देती है। यदि वैराग्य भीतर है तो अहंकार छोड़ने का साहस आसान होगा। यह आध्यात्मिक समीकरण हम अपने हर सद्गुण और दुगरुण के साथ लगा सकते हैं।

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