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19 नवंबर 2011

कोटा बैराज की कहानी उसी की जुबानी!

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मैं बैराज हूं। हां, वही जो चंबल के तेज प्रवाह को आपके विकास के खातिर रोके हुए है। मैं आज 51 साल का हो रहा हूं। मेरे जन्मदाता इंजीनियरों ने मुझे शतायु का आशीर्वाद दिया था। उम्मीद है इसी भरोसे मैं कम से कम 100 साल तो जीऊंगा ही..बशर्ते कोई बड़ा संकट नहीं आया तो।

मेरा जन्म जिस उद्देश्य से हुआ, मैं उसे पूरी शिद्दत के साथ पूरा कर रहा हूं। मेरे कदम अब बुढ़ापे की तरफ बढ़ने लगे हैं, बावजूद मैं कुछ नहीं भूला। भूल तो आप गए, और आपसे ज्यादा मुझे बनाने वाले, मेरे ही विभाग के कर्ता-धर्ता।

मेरा कलेजा बहुत बड़ा है, छोटे-मोटे जख्मों की तो मैं परवाह ही नहीं करता लेकिन इस अनदेखी के चलते कुछ बड़े घाव भी लग चुके हैं जो भविष्य में मेरे लिए जानलेवा साबित हो सकते हैं। फिर उम्र का तकाजा भी है। कई साल हो गए मेरे विभाग के लोगों ने मेरी सुध ही नहीं ली।

आज भी हाड़ौती में 2 लाख 29 हजार हैक्टेयर और मध्यप्रदेश में भी इतनी ही भूमि में प्राण फूंककर खेतों में लहलहाती फसलों का जनक हूं मैं। चंबल की दाईं व बांई मुख्य नहर में अथाह जलराशि पर जो लहरें मचलती हैं, वे मेरे खजाने से ही निकलकर आपका मन आल्हादित करती हैं। आपको अन्न धान मिलता है उनसे और हाड़ौती के बाजारों में सजता है लक्ष्मी का दरबार।

..लेकिन मेरी देह को एक तरफ चूहे जर्जर कर रहे हैं तो कबूतरों को दाना डालने वाले लोगों के पुण्य का भी मुझे ही चुकारा करना है। मैं नहीं चाहता कि वे मुझसे अलग हों। उनका इज्जत के साथ पुनर्वास हो तो मुझे मंजूर है।

मुझे गांव-देहात से आ रही उन खबरों से भी पीड़ा होती है कि वहां पानी नहीं पहुंच रहा। मेरी नहरों को मरम्मत की दरकार है। सरकार को अब इस बारे में गंभीरता से सोचना पड़ेगा।

मैं आपका ध्यान एक और बात पर आकर्षित करना चाहूंगा। मछली मारने वाले विस्फोट करके मेरे दिल के जख्मों को और गहरा कर रहे हैं तो सुरक्षा के बिना मैं भय से कांपता रहता हूं। उन्हें भी हटाना होगा। सोचो इस हालत में मुझे कभी कुछ हो गया तो क्या होगा। बहुत देर होने से पहले कोई मेरी सुध ले लें।

बैराज का बॉयोडेटा

>20 नवंबर,1960 को प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने किया उद्घाटन

>19 गेट, 40 गुणा 42 फीट चौड़ा, 122.50 फुट ऊंचा,1810 फुट लंबा

>7.50 लाख क्यूसेक डिस्चार्ज क्षमता

>4 करोड़ 24 लाख थी लागत

>854 फीट भराव क्षमता

आधी मिट्टी, आधा कांक्रीट से बना

स्वदेशी तकनीक से तैयार किया कोटा बैराज का आधा हिस्सा मिट्टी से एवं शेष आधा भाग कांक्रीट से बना है। 14 अगस्त,1986 को कोटा में बाढ़ आने पर इससे सर्वाधिक 19 गेट से 6 लाख 68 हजार क्यूसेक पानी छोड़ा गया था।

ढाई साल में बना डायवर्जन डेम

चंबल पर सबसे पहले गांधीसागर डेम बना (एमपी), फिर राणाप्रताप सागर डेम (रावतभाटा, चित्तौड़)। जवाहर सागर (बूंदी जिला) अंत में कोटा बैराज। सहायक अधीक्षण अभियंता कोटा बैराज ने बताया कि गांधीसागर व कोटा बैराज दोनों नवंबर 1960 में तैयार हुए थे।

अब ये मुसीबन बन चुके हैं

> इससे गुजरने वाले भारी ट्रैफिक ।

> अतिक्रमण कर रहे असामाजिक तत्व

> कबूतरों को दाना डालने से चूहे पनप गए और इसे खोखला कर रहे हैं।

> संवेदनशील होने के बावजूद इसकी सुरक्षा पर किसी का ध्यान नहीं

लाइफ लाइन है दो राज्यों की

> सिंचाई-नहरों में छोड़ने वाले पानी से राज.,एमपी में सिंचाई होती है।

> पेयजल-शहर के आवासीय क्षेत्रों में 24 घंटे जलापूर्ति होती है

बिजली उत्पादन

कोटा थर्मल और एनटीपीसी, अंता को बिजली उत्पादन के लिए पानी के साथ उद्योगों को करीब 18 हजार क्यूसेक पानी हर साल देता है।

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