कार्तिक शुक्ल एकादशी को देवप्रबोधिनी एकादशी कहते हैं। इस बार यह एकादशी 6 नवंबर, रविवार को है। प्रबोधन का अर्थ है - जागना। इस प्रकार देवप्रबोधन का अर्थ होता है - देवताओं का जागना।
जिस तरह मानव रात होते ही सोने चला जाता है, ठीक उसी तरह पुराणों की मान्यता है कि देवता भी एक नियत समय पर सोते और जागते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु साल के चार माह शेषनाग की शैय्या पर सोने के लिये क्षीरसागर में शयन करते हैं तथा कार्तिक शुक्ल एकादशी को वे उठ जाते हैं। इसलिए इसे देवोत्थान, देवउठनी या देवप्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है।
भगवान विष्णु के उठ जाने के बाद अन्य देवता भी निद्रा त्यागते हैं। व्यवहार जगत की दृष्टि से देवप्रबोधिनी का अर्थ होता है- स्वयं में देवत्व को जगाना। प्रबोधिनी एकादशी का तात्पर्य एकमात्र यह है कि व्यक्ति अब उठकर कर्म-धर्म के रूप में देवता का स्वागत करें। भगवान के साथ अपने मन के देवत्व अर्थात् मन को जगा दें । हम हमारे जीवन को जगा दें।
मूलत: देवता कभी सोते नहीं, किंतु हम सोए रहते हैं। मूल भाव यह है कि किसी को कष्ट न पहुंचाएं, ईष्र्या, द्वेष के भाव न रखें। सत्य आचरण करें, स्वस्थ प्रतियोगी बनें। यह दृढ़ संकल्प अपने मन में जगाना ही प्रबोधिनी है । ऐसा संकल्प ले कि जो मन को प्रसन्न रखें। हमें अज्ञानता रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाएं। इस प्रकार दीपक की भांति जल कर दूसरों को प्रकाश देना ही सच्चा प्रबोधन है।
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
06 नवंबर 2011
देवताओं की सुबह है देवप्रबोधिनी एकादशी
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