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26 नवंबर 2011

सिर्फ किसी को आकर्षित करने के लिए नहीं होता है श्रंगार....


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सुंदरता भगवान की विभूति है। सौंदर्य और श्रंगार परमात्मा को पसंद हैं। सामान्य तौर पर श्रंगार को शरीर से जोड़कर देखा और समझा गया है और इसीलिए श्रंगार वासना के लिए सेतु बन जाता है। सौंदर्य का संबंध जब तक शरीर से रहेगा, यह भोग का विषय होगा।

लेकिन सुंदरता ईश्वर से जुड़ते ही अनुभूति हो जाती है। सौंदर्य को केवल संसार से जोड़ेंगे तो श्रंगार केवल रूप संयोजन होगा और यदि यह भगवान से जुड़ता है तो इसमें पवित्रता आ जाती है। भगवान की दुनिया में पवित्रता सबसे अच्छा श्रंगार और सौंदर्य है। यदि पवित्रता हो तो सादगी भी गजब का श्रंगार बन जाएगी। श्रंगार में यदि स्वरूपता न हो तो वह भी अभद्रता ही है।

अब तो श्रंगार का अर्थ एक-दूसरे को आकर्षित करना ही रह गया है। श्रंगार को शस्त्र बनाकर शरीर के आक्रमण हो रहे हैं। हमारे ऋषि-मुनियों ने श्रंगार के लिए एक साधन बताया है, इसे संसार तप के नाम से जानता है। तप एकांत की घटना है, इसमें प्रदर्शन नहीं होता। तप से जो सौंदर्य प्राप्त होता है, वह ईश्वर का ही सौंदर्य है।

केवल शरीर को ही न संवारा जाए, संवारने के लिए जीवन में और भी कई उपाय हैं। बहुत कम लोग समझ पाते हैं कि समय को भी संवारा जाता है। समय का सदुपयोग करें, यह एक बड़ी शिक्षा है, लेकिन खाली समय में क्या करें, यह उससे भी अधिक समझ का मामला है। खाली समय का सदुपयोग कैसे करें, यह समय का श्रंगार है। अपने लोगों के साथ खाली समय प्रेम से बिताया जाए, यह भी एक श्रंगार है और पारिवारिक जीवन को सौंदर्य प्रदान करता है।

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