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13 नवंबर 2011

‘कुल्लू-मनाली में आज भी ताजा है चाचा की यादें’

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शिमला.कुल्लू. आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का कुल्लू-मनाली से खास नाता था। नेहरू ने एकांतवास और विश्राम करने के लिए भी कुल्लू-मनाली को ही चुना था। नेहरू कुंड और वन विहार आज भी उनकी यादों को ताजा करते हैं। उन्होंने भारत-चीन के बीच हुए पंचशील के सिद्धांतों की योजना भी यहीं तैयार की थी। इसका वर्णन उन्होंने ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ किया है। इसमें उन्होंने लिखा है-‘मैं पहाड़ों का दिलदादा हूं.. और हिमाचल के कुल्लू-मनाली में एक खामोश हकीकत का एहसास होता है।’ यही कारण रहा कि अपने जीवन में सुकून की तलाश में नेहरू 1942 और 1958 में कुल्लू-मनाली आए।

नग्गर से भी जुड़ाव

पं. नेहरू 9 मई, 1942 में मनाली में आए। यहां एक महीने तक आराम किया। वे विश्वप्रसिद्ध चित्रकार निकोलस रोरिख की साधना स्थली में भी रहे। उन्होंने देश के लिए नग्गर और मनाली में ऐसे आधार रखे, जो बाद में देश के लिए ऐतिहासिक आईना साबित हुए। इस दौरान चाचा नेहरू जिला कुल्लू के दूरदराज क्षेत्र आनी के कुंगश विश्राम गृह में भी ठहरे थे। क्षेत्रों के लोगों को नेहरू का कुल्लू मनाली और आनी प्रवास आज भी याद है।

तब सुर्खियों में रहा था कुल्लू

आत्मकथा पर आधारित पुस्तक ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ में नेहरू ने जिक्र किया है कि जब 1958 के शुरू में ही समाचार पत्रों और रेडियो में अटकलों का दौर शुरू हो गया कि नेहरू कुछ आराम करना चाहते हैं। वे किस स्थान को आराम के लिए चुनेंगे और कितना आराम करेंगे। लेकिन जब राज खुला तो कुल्लू-मनाली उनकी विश्राम स्थली के रूप में पूरे विश्व में उभरकर सामने आई।
जंग का खाका किया तैयार
देश की आजादी की अंतिम जंग का खाका भी नेहरू ने यहीं बनाया था। कुल्लू प्रवास के बाद 9 अगस्त, 1942 को ‘हिंदुस्तान छोड़ दो’ प्रस्ताव पास किया गया। नेहरू का मानना था कि कुल्लू-मनाली की एकांत वादियों में कोई भी योजना बनाई जाए उसे अमलीजामा जरूर पहनाया जाता है। इसके सकारात्मक परिणाम भी सामने आते हैं।

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