जीवन का अंतिल अटल सत्य है मौत। जिस व्यक्ति ने जन्म लिया है उसे एक अवश्य ही मृत्यु को प्राप्त होना है। शास्त्रों में बताया गया है हर व्यक्ति का मृत्यु का समय पूर्व निश्चित है। इसके साथ ही यह पहले से ही निर्धारित है कि कौन व्यक्ति किस प्रकार मृत्यु को प्राप्त होगा।
वेद-पुराण के अनुसार सब कुछ पूर्व निश्चित है लेकिन व्यक्ति के कर्म से ही प्रारब्ध बनता है। कर्म जैसे होंगे वैसा ही भाग्य बनेगा। इसी वजह से यदि कोई व्यक्ति परमात्मा के दिए जीवन दान का गलत उपयोग करता है तो निश्चित ही इसके बुरे फल प्राप्त होते हैं। यदि कोई व्यक्ति किसी भी कारण से आत्महत्या जैसा पाप करता है तो शास्त्रों में ऐसे लोगों के लिए किसी भी प्रकार का श्राद्ध कर्म वर्जित बताया गया है।
विष्णुस्मृति के अनुसार जो व्यक्ति अग्रि, जल, विष से मृत्यु को प्राप्त होता है या किसी भी कारण से आत्महत्या करता है तो उसके लिए अशौच एवं श्राद्ध-तर्पण का विधान नही है। यदि इस प्रकार मृत लोगों के लिए श्राद्ध-तर्पण या अन्य सात्विक पूजन किया जाता है तो इसका पुण्य उनको मिलता नहीं है। इन्हीं कारणों से आत्महत्या जैसे कृत्य को घोर पाप की श्रेणी में रखा गया है। किसी भी परिस्थिति में इस ओर कदम नहीं बढ़ाना चाहिए।
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
20 नवंबर 2011
ऐसे मरने वालों के लिए कोई पूजा नहीं होती, क्योंकि...
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