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16 नवंबर 2011

मौत का डर भगाना है तो सबसे पहले यह काम करें...

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जीवन में सीखने के लिए जितनी स्थितियां हैं, उनमें से एक महत्वपूर्ण है मृत्यु। फकीरों ने कहा है धार्मिकता शुरुआत है जीवन को सही रूप में देखने की। और अंत होते-होते धार्मिकता जब अध्यात्म में बदलती है, तब मृत्यु को सही ढंग से देखना आ जाता है।

मृत्यु भी गुरु की भूमिका में होती है। बड़ी से बड़ी सीख मृत्यु से ली जाती है। कई लोग कहते हैं फटाफट शरीर खत्म हो जाए तो ठीक है, पर थोड़ा-थोड़ा शारीरिक कष्ट और फिर मौत, यह बड़ा कष्टकारी है। लोग मौत भी सुविधाजनक चाहते हैं।



दरअसल, जब तक जिंदगी में बढ़िया चल रहा होता है, तब तक मृत्यु की याद भी नहीं आती और जहां शरीर के, हालात के कष्ट शुरू हुए तब मनुष्य थोड़ा-बहुत मौत को टटोलता है। मृत्यु को मजबूरी या भय से याद न किया जाए, इसे सतत स्मरण रखा जाए।

जितना मृत्यु से परिचय गहरा होगा, जिंदगी उतने ही अच्छे से समझ में आएगी। यदि जीना चाहते हैं तो मृत्यु को न भूलें। परमात्मा ने मनुष्य को बुद्धिमान बनाकर सर्वश्रेष्ठ वरदान दिया है। इसलिए थोड़ी बुद्धि मृत्यु के स्वाद, समझ और स्वागत में भी खर्च की जाए।

उसे जब आना होगा, कोई रोक नहीं पाएगा, लेकिन तैयारी पूर्व से ही होगी तो जीवन जरूर मस्ती का स्पर्श ले लेगा। मृत्यु की समझ के लिए सतत जागृति हमें प्रेमपूर्ण बनाएगी, हरेक के प्रति हमारी दृष्टि बदल देगी। ऊर्जा मौत से बचने में न लगाकर समझने में लगाई जाए तो जीवन जीना भी उपलब्धि हो जाएगा।

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