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02 नवंबर 2011

पूर्व आतंकी और महिला अधिकारी कुछ यूं बन गए जीवन साथी!


श्रीनगर प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय। राजा परजा जेहि रूचै, सीस देइ ले जाय। कबीर का प्रेम पर आधारित यह दोहा जम्मू कश्मीर के इस प्रेमी जोड़े पर सटीक बैठता है। करीब 25 कश्मीरी पंडितों की हत्या व आतंकवाद के कई आरोपों में 17 साल जेल में काट चुके आतंकी फारूख अहमद डार उर्फ बिट्टा कराटे पर राज्य की ही एक प्रशासनिक अधिकारी का दिल आ गया।


प्रेम की ताकत परिवार और समाज की आपत्तियों पर भारी पड़ी। मंगलवार रात अस्सबाह अजरुमंद खान और फारूख अहमद डार का निकाह श्रीनगर के करीब नसीम बाग में सम्पन्न हो गया। निकाह में मीरवाईज उमर फारूख, शबीर शाह, प्रो. अब्दुल गनी लोन समेत कई अलगाववादी नेताओं ने शिरकत की।

दोनों की जुबानी पूरी कहानी..।

मैं अस्सबाह अर्जुमंद खान..। एक लड़की का सबसे बड़ा जेवर उसकी शर्म-हया, बुजुर्गो का लिहाज, तहजीब और सब्र होता है। मैं मगरिब की बेटी हूं और इस तरह अपने निकाह के जिमन (बारे) में गुफ्तगू करते हुए शर्म महसूस करती हूं। नारी का दूसरा नाम संवेदनशीलता, लज्जा और ममता है। यही मेरे संस्कार हैं और मुझे उम्मीद है एक लड़की होने की वजह से आप मेरे जज्बात व अहसास बखूबी समझेंगी..।

जब अस्सबाह से उनकी शादी से जुड़े सवाल किए तो इस अंदाज में जवाब दिया। दोनों के घरों में शादी की तैयारियां जोरों पर हैं। मेहमान पहुंच चुके हैं। लेकिन इस शादी को अंजाम तक पहुंचाने के लिए असबाह को काफी संघर्ष करना पड़ा। कौन है दुल्हन अस्सबाह अर्जुमंद खान ने 1999 में कश्मीर यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में एमए किया। उसके बाद एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी में नौकरी की। वहां 2003 से 2007 तक काम करने के साथ जर्मनी से पीस एंड कनफ्लिक्ट स्टडीज में कोर्स किया। 2009 में कश्मीर प्रशासनिक सेवा पास की। वर्तमान में जनरल एडमिनिस्ट्रेटिव डिपार्टमेंट में बतौर ट्रेनी पदस्थ है।

कौन है दूल्हा जम्म-कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट का नेता और आतंकी कमांडर रह चुका फारूक अहमद डार को बिट्टा कराटे के नाम से भी जाना जाता है। 1990 में गिरफ्तार होने के बाद 2006 में टाडा कोर्ट ने उसे रिहा किया था। 2008 में अमरनाथ विवाद के दौरान उसे दोबारा गिरफ्तार किया गया था।

इस तरह परवान चढ़ा दोनों का प्यार अस्सबाह और फारूक तीन साल पहले एक दोस्त के घर मिले थे। 4-5 माह बाद फारूक ने प्रपोज किया। कुछ समय बाद अस्सबाह ने हां कर दी। डेढ़ साल पहले शादी का निर्णय लिया। जब अस्सबाह के घर वालों को यह पता चला तो हंगामा हो गया। वे नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी एक आतंकी से शादी करे। लेकिन अस्सबाह जिद पर अड़ी रही।

इसी बीच फारूक के दोस्त और भाई-बहन ने अस्सबाह के परिवारवालों को मनाया। बेटी की जिद के आगे घरवालों को झुकना पड़ा। अस्सबाह कहती हैं, कश्मीर में हर घर में ऐसे उदाहरण देखने को मिल जाएंगे। एक ही घर में बेटा अलगाववादी है और दूसरा सरकारी मुलाजिम।

तो मैं किसी अलगाववादी से शादी कर रही हूं तो कुछ अजीब नहीं। हां, आतंकी से शादी करने पर मेरे परिवार को आपत्ति थी, जो जायज है। हम दोनों के बीच आकर्षण का जो सबसे कारण था वह एक जाति का होना था। फारूक की जिस बात ने मुझे प्रभावित किया वह उसकी निर्णय क्षमता थी। फारूक कहते हैं कि अस्सबाह की सादगी से वह पहली ही नजर में प्रभावित हुए थे। पूरे विश्व की राजनीति का उन्हें काफी अच्छा नॉलेज है।

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