नई दिल्ली. पैप स्मीयर टेस्ट यानी सर्विक्स कैंसर (गर्भाशय) के कैंसर की मामूली सी जांच। इसी की अनदेखी से दुनिया में हर साल ढाई लाख और भारत में 74 हजार महिलाओं की मौत हो जाती है। यानी हर तीन में से एक मौत भारत में। ये जागरुकता की कमी ही है, वरना सरकारी कैंप में नि:शुल्क होने वाली इस जांच से इतनी महिलाओं की जान बचाई जा सकती थी
7 नवंबर को मनाए गए पैप स्मीयर डे पर भारत की स्थिति को लेकर चिंता जताई गई। चिकित्सकों के अनुसार समय रहते इस बीमारी का यदि पता चल जाए तो निदान पूरी तरह संभव है। लेकिन ऐसा होता नहीं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया में हर साल पांच लाख मामले सामने आते हैं, जबकि हमारे देश में 1.34 लाख मामले। यानी दुनिया के हर चार में से एक मरीज भारतीय है। इंग्लैंड और अमेरिका में सर्विक्स कैंसर को लेकर जागरुकता और फॉलोअप का ऐसा सिस्टम बनाया गया है, जिससे वहां किसी महिला की मौत सर्विक्स कैंसर से नहीं होती। वहां 21 से 65 साल की सभी महिलाओं को पैप स्मीयर टेस्ट कराना कानूनी रूप से अनिवार्य है। ऐसा नहीं कराने पर उन्हें गिरफ्तार कर यह टेस्ट करवाया जाता है।
सर्विकल कैंसर की वजह
ह्यूमन पैपिलोमा वायरस के संक्रमण से होने वाले गर्भाशय कैंसर के लक्षण बहुत देर से उभरते हैं। इसी वजह से कैंसर के बहुत बढ़ जाने पर बीमारी की पहचान होती है। लेकिन तब इसका इलाज नहीं किया जा सकता। कैंसर की जल्दी पहचान करने का आसान तरीका है पैप स्मीयर टेस्ट।
मैडम क्यूरी की स्मृति में मनाया जाता है पैप स्मीयर डे
कैंसर के इलाज में इस्तेमाल हुई सबसे पहली धातु रेडियम ही थी। जिसका आविष्कार मैडम क्यूरी ने किया था। उन्हीं की याद में विश्व के चिकित्सक उनके जन्मदिन, 7 नवंबर, को पैप स्मीयर-डे के रूप में मनाते हैं। अब रेडियम के स्थान पर इंडियम या सीजियम का उपयोग किया जाता है।
ऐसे होता है पैप स्मीयर टेस्ट
- गर्भाशय की कुछ कोशिकाओं को जांच के लिए निकाल लिया जाता है।
- संक्रमित होने पर कोशिकाओं में बदलाव आते हैं, जिनकी पहचान परीक्षण के दौरान की जाती है।
ऐसे होता है इलाज
-कोशिकाएं असामान्य हैं, तो कॉल्पोस्कोपी नामक तकनीक से कैंसर का इलाज किया जाता है। इसमें एक केमिकल का इंजेक्शन लगाया जाता है, जिससे कैंसर की सेल अलग रंग से चमकती है। इससे उन्हें निकालने में आसानी होती है। फिर उन्हें बर्फ या नाइट्रस ऑक्साइड गैस से जला दिया जाता है। इस प्रक्रिया को क्रायोकॉट्री कहते हैं। इसके अलावा इंग्लैंड में इलेक्ट्रिक तार से मरीज को बेहोश कर कैंसर सेल को जलाते हैं। कई मामलों में कैंसर ग्रस्त हिस्से को काट कर शरीर से अलग कर दिया जाता है। इसे कॉनबायोट्सी कहा जाता है।
टीके भी हैं उपलब्ध
- महिलाओं को कैंसर से बचाने के लिए सर्वेरिक्स और गर्डैसिल टीके लगभग सभी तरह के एचपीवी से बचाव करते हैं। ये टीके 9 वर्ष की बच्चियों को भी लगाए जा सकते हैं। सामान्य तौर पर 13 से 26 साल की उम्र में ये टीके लगाए जाते हैं। इनके तीन डोज दिए जाते हैं। चिकित्सकों का मानना है कि तीनों बार एक ही कंपनी का टीका लगाया जाना चाहिए।
- पुरुषों में भी ये टीके 9 से 26 साल में लगाए जा सकते हैं।
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