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31 अक्तूबर 2011

संतान को लंबी उम्र प्रदान करती हैं षष्ठी देवी


कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्य षष्ठी व्रत किया जाता है। इस दिन भगवान सूर्य व षष्ठी देवी की पूजा की जाती है। इस बार यह व्रत 1 नवंबर, मंगलवार को है।

धर्म शास्त्रों के अनुसार षष्ठी देवी प्रमुख मातृ शक्तियों का ही अंश स्वरूप है। ब्रह्मवैवर्तपुराण के प्रकृतिखण्ड के अनुसार परमात्मा ने सृष्टि की रचना के लिए स्वयं के शरीर को दो भागों में विभक्त कर लिया। दक्षिण भाग से पुरुष तथा वाम भाग से स्त्री(प्रकृति) का जन्म हुआ। यहां प्रकृति शब्द की व्याख्या इस प्रकार की गई है- प्र अर्थात सत्वगुण, कृ अर्थात रजोगुण व ति अर्थात तमोगुण।

त्रिगुणात्मस्वरूपा या सर्वशक्तिसमन्विता।

प्रधानसृष्टिकरणे प्रकृतिस्तेन कथ्यते।।

(ब्रह्मवैवर्तपुराण, प्रकृतिखंड 1/6)

उपर्युक्त पुराण के अनुसार सृष्टि की अधिष्ठात्री ये ही प्रकृतिदेवी स्वयं को पांच भागों में विभक्त करती है- दुर्गा, राधा, लक्ष्मी, सरस्वती और सावित्री। ये पांच देवियां पूर्णतम प्रकृति कहलाती हैं।

मार्कण्डेयपुराण के अनुसार- स्त्रिय: समस्ता: सकला जगत्सु। प्रकृति के एक प्रधान अंश को देवसेना कहते हैं जो सबसे श्रेष्ठ मातृका मानी जाती है। ये समस्त लोकों के बालकों की रक्षिका देवी हैं। प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इन देवी को ही षष्ठी देवी कहा गया है।

षष्ठांशा प्रकृतेर्या च सा च षष्ठी प्रकीर्तिता।

बालकाधिष्ठातृदेवी विष्णुमाया च बालदा।।

आयु:प्रदा च बालानां धात्री रक्षणकारिणी।

सततं शिशुपाश्र्वस्था योगेन सिद्धियोगिनी।।

(ब्रह्मवैवर्तपुराण, प्रकृतिखण्ड 43/4, 6)

यह षष्ठी देवी नवजात शिशुओं की रक्षा करती हैं तथा उन्हें आरोग्य व दीर्घायु प्रदान करती हैं। इन षष्ठी देवी का पूजन ही कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को किया जाता है।

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