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13 अक्तूबर 2011

अब काम के लिए नहीं लगाने पड़ेंगे चक्कर,होगी लोक सेवा की गारंटी!

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सरकारी विभागों में अब आमजन को किसी भी काम के लिए चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे। यह सब कुछ राजस्थान लोक सेवा अदायगी एवं सुनवाई की गारंटी कानून के तहत होगा। इस कानून से सरकारी दफ्तरों की तस्वीर बदल सकती है।

इसके तहत निर्धारित समयावधि में काम नहीं होने पर संबंधित कर्मचारी और अधिकारी के खिलाफ शिकायत की जा सकती है। इन शिकायतों की जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा सुनवाई कर निर्णय सुनाया जाएगा। इस कानून में जिला एवं संभाग स्तर पर संबंधित अधिकारी के समक्ष अपील का भी प्रावधान किया गया है। अंतिम फैसला अधिकतम 60 दिनों में करना अनिवार्य किया गया है।

इस कानून में ग्राम सेवक, पटवारी, तहसीलदार, बीडीओ, एसडीओ और संभागीय आयुक्त को पीठासीन अधिकार माना गया है। इन अधिकारियों को सुनवाई और जुर्माने के अधिकार दिए गए हैं।

ऐसे समझें कानून को..

मैंने बिल में सुधार, जाति या मूल निवास प्रमाण पत्र के लिए आवेदन किया है और अधिकारी व कर्मचारी चक्कर दे रहे हैं।

मैं कैसे सेवा की गारंटी कानून का लाभ ले सकता हूं।

आप गांव में रहते हैं तो पंचायत और शहर में रहते हैं तो नगर पालिका में जिम्मेदार अधिकारी को लिखित शिकायत करें। इसके लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा। आपकी शिकायत प्राप्ति की लिखित में सूचना दी जाएगी और रजिस्टर में निस्तारण की तारीख में भी लिखी जाएगी।

इसके बाद मैं क्या करूं?

अब आपको हर माह 5, 12, 20 व 27 को होने वाली सुनवाई में हिस्सा लेना होगा। सुनने वाले अधिकारी निर्धारित समय सीमा में काम करवाएगा।

ऐसा नहीं हुआ और आवेदन खारिज कर दिया तो?

फिर आपको संबंधित तहसीलदार, बीडीओ और एसडीओ के समक्ष अपील करें। यह अपील अधिकतम 30 दिन में कर सकते हैं।

फैसला मेरे पक्ष में नहीं हुआ तो क्या करूं?

फिर आपको संभागीय आयुक्त के समक्ष अपील करनी होगी। उचित कारण बताकर अपील अधिकतम साठ दिनों में भी की जा सकती है।

फिर तो काम हो जाएगा ?

काम में लापरवाही बरतने वाले अधिकारी व कर्मचारी को यहां जुर्माना सुनाया जा सकता है। आवेदक, आरोपी अधिकारी व कर्मचारी के उपस्थित नहीं होने पर एक तरफा फैसला सुनाया जा सकता है।

पब्लिकेशन होते ही सभी विभागों को भेजेंगे

"नोटिफिकेशन जारी करके पब्लिकेशन के लिए भेजा जा चुका है। प्रेस से आते ही सभी विभागों को भेज दिया जाएगा।"

आरपी जैन,
प्रमुख शासन सचिव


"इस कानून में पेचीदगियां है। साक्षरता का अभाव है। ऐसे में आवेदन और अपील की औपचारिकताएं ज्यादा है। इससे प्रक्रिया जटिल हो गई है, जिसको सरल किया जाना चाहिए। कानून में ग्रामीण क्षेत्रों के लिए बातें स्पष्ट हैं, लेकिन शहरी क्षेत्र के लिए स्पष्ट जानकार नहीं है।"

निर्मल कुणावत,
वरिष्ठ अधिवक्ता


किसे और कहां करें शिकायत

इस कानून की धारा 3 के अनुसार प्रथम शिकायत ग्राम स्तर पर पंचायत मुख्यालय और शहरी क्षेत्र में नगर पालिका या परिषद में की जा सकेगी।

कौन करेगा सुनवाई

इस कानून में ग्राम स्तर पर सुनवाई ग्राम सेवक, पटवारी सुनवाई करेंगे। इनके साथ सरपंच, वार्ड पंच, एएनएम, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता शामिल होंगे।

कब होगी सुनवाई

हर माह की 5, 12, 20 व 27 तारीख को सुनवाई होगी। इसके अलावा जन सुनवाई का मासिक केलेंडर भी पंचायत द्वारा तैयार किया जाएगा। प्रत्येक शिकायत का रजिस्टर में इंद्राज और निस्तारण की तिथि भी दर्ज कर दी जाएगी। शिकायतकर्ता को शिकायत प्राप्ति और कार्यवाही लिखित में दी जाएगी। शिकायत अस्वीकार करने पर उसकी वजह भी लिखित में बतानी होगी।

शिकायत निशुल्क :

इस कानून के तहत शिकायत पूरी तरह निशुल्क होगी।

फैसले से असंतुष्ट होने पर क्या करें

ग्राम पंचायत स्तर पर फैसले से असंतुष्ट होने या आवेदन खारिज होने पर तहसीलदार, बीडीओ और एसडीओ के समक्ष 30 दिनों में अपील करने का प्रावधान है। ये अधिकारी हर माह की 6, 15, 21 एवं 28 को सुनवाई करेंगे।

इस स्तर पर हुए फैसले को संभागीय आयुक्त के समक्ष 30 दिनों में अपील की जा सकती है। विशेष परिस्थितियों में यह 60 दिनों तक बढ़ाई जा सकती है। संभागीय आयुक्त को समय की सीमा में नहीं बांधा गया है। वे मामले की गुणावगुण के हिसाब से प्रकरण का निस्तारण कर सकेंगे।

राज्य स्तर पर निगरानी

राज्य स्तर पर जन अभाव अभियोग निराकरण आयोग के गठन का प्रावधान है। इस अधिनियम के तहत समस्त कार्यवाही पर निगरानी का अधिकार इस आयोग को होगा।

सजा का प्रावधान

अपीलीय अधिकारी प्रथम अपील अधिकारी को कोई भी कार्य करने का आदेश पारित कर सकता है। जिम्मेदार अफसरों व कर्मचारियों को न्यूनतम 500 रुपए व अधिकतम 5000 हजार रुपए जुर्माने का प्रावधान किया गया है।

इसके बावजूद लापरवाही बरती गई तो अपीलीय अधिकारी को प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट के अधिकार कार्यवाही और सुनवाई के समय होंगे। प्रथम और द्वितीय सुनवाई करने वाले अधिकारियों को दोषी कर्मचारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई का भी अधिकार होगा।

आगे क्या :

इस कानून में संशोधन व नियम बनाने की शक्ति राज्य सरकार के पास है। दो वर्ष में सुव्यवस्थित लागू करने में परिवर्तन या संशोधन किया जा सकेगा।

कौनसी सेवाएं होंगी कानून के दायरे में

पुलिस विभाग का वेरिफिकेशन, पोस्टमार्टम रिपोर्ट लेने, ड्राइविंग लाइसेंस, बिजली, पानी कनेक्शन, बिलों को सही करने की कार्रवाई, मूल निवास प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र, चरित्र प्रमाण पत्र, कृषि भूमि नामांतरण, राशन कार्ड, बीपीएल एपीएल कार्ड, कर्मचारी पेंशन प्रकरण, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की विभिन्न योजनाओं में चिकित्सा सुविधा मुहैया करवाना, पत्थरगढ़ी, राजस्व एवं भूमि रिकार्ड के प्राप्तियों से संबंधित मामलों को शामिल किया गया है।

कानून के दायरे से बाहर कौन

सूचना का अधिकार, न्यायालय से संबंधित जानकारी, दुर्भावनापूर्ण की गई शिकायत, राजभवन के समस्त कारिंदों, विधानसभा, अन्य अधीनस्थ न्यायालय के कर्मचारियों व राज्य आयोगों के कर्मचारी भी इस कानून के दायरे से बाहर रखे गए हैं।

क्या हैं कानून में खामियां

इस कानून में ग्राम स्तर पर शिकायत करने और सुनवाई करने वाले अधिकारियों का स्पष्ट उल्लेख किया गया है। शहरी क्षेत्र में प्रथम सुनवाई करने वाले अधिकारियों का स्पष्ट उल्लेख नहीं किया गया है। कानून के दायरे में लिए गए कार्यो की समयावधि इसमें नहीं दी गई है। इस अधिनियम या उपनियम के अधीन सद्भावना पूर्व कार्यवाही के विरुद्ध कोई शिकायत दर्ज नहीं करने का
प्रावधान कर कानून को शिथिल करने की कोशिश की गई है।


जवाबदेही तय होगी

राजस्थान लोक सेवाओं की अदायगी और सुनवाई गारंटी कानून का शहर और गांव की जनता को फायदा मिलेगा। इस कानून को पूरी तरह से लागू होने में भले ही कुछ समय लग जाए, लेकिन यह तय है कि जिम्मेदार अधिकारियों व कर्मचारियों को सेवा के काम निर्धारित समय में करने होंगे।

अधिकारियों की जवाबदेही तय होगी। काम नहीं होने पर लोग सीधे उनकी शिकायत कर सकेंगे। शिकायत नहीं सुनने पर आला अफसरों के पास शिकायत कर सकेंगे। दोषी पाए जाने पर ऐसे अधिकारियों व कर्मचारियों को जुर्माना अदा करना होगा। साथ ही अनुशासनात्मक कार्रवाई का भी सामना करना पड़ेगा।

माने तो सबको लाभ

आमजन को इन सेवाओं को हासिल करने के लिए किसी भी प्रकार के प्रभाव का इस्तेमाल नहीं करना पड़ेगा। पैसे व समय की बचत होगी।

निर्धारित समय में काम करने से सरकारी ऑफिसों में कामकाज व्यवस्थित हो जाएगा। फिर उन्हें किसी को चक्कर नहीं देने पड़ेंगे।

कानून के तहत सभी काम लिखित में होने से कर्मचारियों को कोई परेशानी नहीं होगी।

और भी हो सकता है फायदें

इस कानून के पूरी तरह से लागू होने के बाद कानून के जानकारों को रोजगार के अवसर मिलेंगे। वैसे तो आम व्यक्ति अपनी पैरवी खुद कर सकेगा, लेकिन जरूरत पड़ने पर उसे वकीलों की मदद भी ले सकता है।

मानवाधिकार, सूचना का अधिकार कानून आने के बाद पाठ्क्रम संचालित हो रहे हैं। उसी तरह इस कानून को भी बतौर पाठ्यक्रम शुरू किया जा सकेगा।

सुनवाई करने वालों पर सख्ती

इस कानून के तहत सुनवाई करने वाला कोई भी अधिकारी इस अधिनियम के तहत सौंपे गए कर्तव्यों का पालना करने में असफल होता है तो सेवा नियमों के अधीन उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।

जैसे ग्राम पंचायत स्तर पर ग्राम सेवक या पटवारी, प्रथम अपील अधिकारी तहसीलदार, बीडीओ व एसडीओ इस दायरे में आ जाएंगे। इन अधिकारियों पर अधिकतम 5 हजार रुपए जुर्माना भी कर सकेंगे।

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