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02 अक्तूबर 2011

सत्यसाईं के निधन के बाद ‘चमत्कार’ गुम, भक्त नदारद

पुट्टपर्थी.कुलवंत हॉल में होने वाली सुबह की आरती ‘प्रभातम’ में अब सिर्फ आश्रम के विद्यार्थी और गले में नीला दुपट्टा डाले कुछ सौ सेवादार ही नजर आ रहे हैं। पांच महीने पहले जब मैं यहां आया था तब पांच हजार आम श्रद्धालु भी मौजूद रहते थे। यही हाल दोपहर और शाम के रूटीन का है,जिसमें आश्रम के व्यवस्थापक ही दिखाई देते हैं। पहले देश-विदेश और पुट्टपर्थी के आसपास से आने वाले करीब दस हजार श्रद्धालु यहां की होटलों और गेस्ट हाउस में ठहरते थे। अब यह आंकड़ा कुछ सैकड़ों में सिमट गया है।

बीते पांच महीनों में बहुत-कुछ बदल गया है पुट्टपर्थी में। दोपहर में हजारों भक्तों की मौजूदगी में होने वाले भजन कार्यक्रम में बाबा मौजूद रहते थे। भजन अब भी हो रहे हैं। लेकिन न बाबा हैं। और न पहले की तरह भक्त। विद्यार्थी और सेवादार ही भजन गायक हैं, और वही श्रोता। शाम को पहले बाबा दर्शन का कार्यक्रम होता था। पांच हजार लोगों की क्षमता वाला कुलवंत हॉल तो उस दौरान खचाखच भरा ही होता था, हॉल के बाहर भी कतारें लगी रहती थीं। अब उस दौरान दो घंटे के लिए समाधि दर्शन हो रहा है। जिसमें बाहर से आने वाले श्रद्धालु इक्का-दुक्का हैं।

जानकार कहते हैं तीन-चार ऐसे कारण हैं जिनसे प्रशांति निलयम (सांई आश्रम) में भक्त कम हो रहे हैं। यहां सारी आस्था सत्य साईं से जुड़ी थी। एक बड़ा तबका बाबा को साक्षात देखने-सुनने का अभ्यस्त था, वो केवल समाधि से संतुष्ट नहीं है। भक्तों ने बरसों-बरस देखा है, बाबा को भजन गाते,प्रवचन देते और दुख-दर्द दूर करते हुए। उनकी जगह अब एक सफेद चबूतरा भर है। रिटायर्ड बैंक अफसर एस. मणि कहते हैं-मुझे खुद को समझाने में पांच महीने लग गए कि बाबा नहीं हैं। चित्रावती रोड पर एक विदेशी भक्त के निवास के केअर टेकर जनार्दन ने कहा-मैडम घर (विदेश) लौट गई हैं।

बाबा नहीं होने से उन्हें अच्छा नहीं लग रहा था। हालांकि पुट्टपर्थी के पास के रहने वाले सुनील रामा की निष्ठा साक्षात साईं से समाधि तक अटल है। वे कहते हैं 26 साल पहले पिताजी की अंगुली पकड़कर आया था, तब से बाबा का हो गया हूं।

विवादों ने डाला असर

भक्तों के मुंह मोड़ लेने का एक बड़ा कारण वे विवाद भी हैं जो बाबा के अवसान से शुरू हुए थे और आज तक जिंदा हैं। उनकी बीमारी से लेकर निधन की तारीख तक पर सवाल खड़े हुए। बाबा के सेवक सत्यजीत, भतीजे रत्नाकर की भूमिकाओं पर सवाल उठने के बाद भक्तों को लगा कि आश्रम में गड़बड़ है। उसी दौरान करोड़ों रुपया यहां से वहां जाता हुआ पकड़ाया। आश्रम के प्रवक्ता प्रो.अनंत रामन ने स्वीकारा कि विवादों से आश्रम आने वाले भक्तों की संख्या में भारी कमी आई है। हालांकि वे इसे अस्थायी दौर बताते हैं। कहते हैं ट्रस्ट में भी अब सब ठीक चल रहा है।

खजाने में आवक कम

भक्तों की कमी से दान में भी कमी आई है। प्रो.रामन के मुताबिक-हां,ऐसा हुआ है। दान कितना कम हुआ इसका हिसाब देखा नहीं। नाम न छापने के आग्रह पर आश्रम के एक करीबी ने कहा- बाबा की कृपा से आर्थिक समृद्धि इतनी है कि दस-पंद्रह साल तक एक पैसा भी न आए तो सारे अस्पताल,कॉलेज,यूनिवर्सिटी से लेकर दूसरे सेवा कार्य चलते रहेंगे।

चमत्कार खत्म, सपने शुरू

सत्य साईं के जाते ही चमत्कारों की चर्चाओं पर विराम लग गया है। बाबा के द्वारा हवा से अंगूठी,चेन लाना या मुंह से शिवलिंग निकालना जैसे चमत्कार केवल संदर्भो में याद किए जाते हैं। लेकिन बाबा सपने में आकर दर्शन और मार्गदर्शन दे गए ये किस्से यहां अब भी खूब चल रहे हैं।

प्रतिमा की मुद्रा ही तय नहीं

प्रतिमा के रूप में साई कब विराजमान होंगे, यह अनिश्चित है। अभी तो यही तय नहीं हुआ है कि साईर्ं किस मुद्रा में (खड़े, या बैठे हुए )स्थापित हों। इसके लिए अखबारों में इश्तेहार देकर भक्तों,कलाकारों से ही सुझाव मांगे जा रहे हैं।

कारोबार भी ढहने लगा

सत्यसाईं के निधन से पुट्टपर्थी के रियल एस्टेट, होटल, ट्रेवल जैसे बड़े कारोबार से लेकर सायबर, टिकट बुकिंग, मनी एक्सचेंज, कपड़ा तक पर बुरा असर पड़ा है। गिफ्ट आर्टिकल की दुकान चलाने वाले मुस्तफा आरिफ के मुताबिक वे पहले दो से तीन हजार रु. रोज कमाई करते थे। लेकिन पिछले तीन महीनों में उन्होंने 1250 रु.कमाए हैं। पुट्टपर्थी में छोटे-बड़े करीब 50 होटल,इतने ही गेस्ट हाऊस भी हैं। सालाना कारोबार अरबों का। लेकिन पांच महीनों से हालत खराब है।

होटलों के हाल ये हैं कि तीस कमरों वाले इस होटल में बीते एक हफ्ते में ये संवाददाता इकलौता ग्राहक पहुंचा हैं। इस गांव में फ्लैट के भाव 4000-5000 रुपए स्क्वेयर फीट जा पहुंचे थे, जो शायद बंगलुरू के किसी पॉश एरिया से कमतर नहीं। अब इसकी आधी कीमत पर भी सौदे नहीं हो रहे हैं।

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