इस पर्व में षष्ठी तिथि के दिन नदी या तालाब में खड़े होकर लोग डूबते सूर्य को अघ्र्य देते हैं तथा सप्तमी तिथि को उगते हुए सूर्य को अघ्र्य देते हैं। इसके साथ ही यह पर्व सम्पन्न होता है। इस पर्व में नदी या तालाब में जाकर सूर्य की पूजा क्यों होती है? यह सूर्य षष्ठी से सम्बन्धित कथाओं से जाना जा सकता है।
भगवान राम की सूर्य पूजा
इस पर्व में कमर तक जल में उतरकर सूर्य को अघ्र्य देने के पीछे कई धार्मिक मान्यताएं हैं। एक कथा के अनुसार भगवान श्री रामचन्द्र जी जब चौदह वर्ष के बनवास के बाद अयोध्या लौटे थे, तब उन्होंने सीता माता के साथ सरयू नदी में जाकर अपने कुल देवता सूर्य की पूजा की थी तथा भांति-भांति के पकवानों से उन्हें अघ्र्य दिया था। तभी से इस परम्परा की शुरुआत हुई।
कर्ण की सूर्य पूजा
दूसरी कथा के अनुसार सूर्य षष्ठी पूजा की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। कर्ण को मित्र बनाने के बाद दुयरेधन ने कर्ण को अंग देश का राजा बना दिया। बिहार स्थित मुंगेर ही प्राचीन काल में अंग देश के नाम से जाना जाता था।
कर्ण को शास्त्रों में सूर्यदेव का पुत्र कहा गया है। यह नियमित गंगा नदी में कमर तक डूबकर सूर्य देव की पूजा किया करता था। कर्ण के कहने पर यहां के लोग कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि को नदी के तट पर जाकर सूर्य देव की पूजा करने लगे।
जल में रहती हैं षष्ठी देवी
लोक मान्यता के अनुसार षष्ठी देवी जल में निवास करती हैं। यह भगवान सूर्य की बहन हैं। षष्ठी देवी संतान सुख देने वाली देवी हैं। मान्यता है कि छोटे बच्चे जब तक अपने पैर के अंगूठे को मुंह में नहीं डालते हैं तब तक यह देवी बच्चे की रक्षा करती हैं।
जब बच्चा पैर का अंगूठा मुंह में डाल लेता है तब देवी बच्चे के पास से चली जाती हैं।षष्ठी तिथि के दिन जल में प्रवेश करके सूर्य को जल देने से षष्ठी देवी और सूर्य दोनों को ही एक साथ उनका प्रसाद मिल जाता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)