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07 अक्तूबर 2011

जर्मनी के खगोलविदों का दावा, धूमकेतुओं से आया पृथ्वी पर पानी

वॉशिंगटन. शुरुआती दिनों में पृथ्वी पर पानी लाने का काम उल्काओं ने किया। जर्मनी के खगोलविदों के ताजा अध्ययन ने इस सिद्धांत को और मजबूती दी है। उन्होंने एक धूमकेतु में मौजूद पानी और महासागरों के केमिकल सिग्नेचर एक जैसे होने का दावा किया है।

यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी की हर्शेल अंतरिक्ष वेधशाला की मदद से वैज्ञानिकों ने अन्य धूमकेतुओं के मुकाबले ‘कॉमेट हार्टली-2’ में मौजूद पानी और समुद्री पानी में ज्यादा समानताएं होने का दावा किया है। यह धूमकेतु नवंबर 2010 में इस स्पेस क्राफ्ट के करीब से गुजरा था।

इसका निर्माण कुपर बेल्ट (सौरमंडल में नेपच्यून की कक्षा से दूर मौजूद क्षेत्र) में हुआ। वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी पर पानी इसी स्थान से आया है। स्पेस डॉट कॉम ने जर्मनी में मैक्स प्लांक इंस्टिट्यूट फॉर सोलर सिस्टम रिसर्च के वैज्ञानिक पॉल हतरेग के हवाले से कहा कि निर्माण के समय पृथ्वी बेहद गरम थी।

वाष्पशील वस्तुएं अंतरिक्ष में चली गई थी। पृथ्वी ठंडी हुई तब वह बहुत ही सूखी थी। पानी और अन्य वाष्पशील वस्तुएं निश्चित रूप से अगले चरण में इस पर आईं। दुनियाभर में समुद्रों के मूल स्रोत के रूप में धूमकेतु को ही देखा जाता रहा है। उनमें सामान्य तौर पर मौजूद रहने वाला बर्फ इसका प्रमुख कारण है।

हालांकि कम्प्यूटर मॉडल्स बताते हैं कि पृथ्वी के महासागरों में अधिकतर पानी उल्काओं से आया। सिर्फ 10 प्रतिशत पानी ही धूमकेतुओं से आया। जर्नल ‘नेचर’ में प्रकाशित रिसर्च में वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के समुद्री पानी और धूमकेतु में मौजूद हाइड्रोजन के आइसोटोप्स की तुलना की।

किसी तत्व के आइसोटोप्स में प्रोटॉन तो एक समान होते हैं, लेकिन न्यूरॉन्स की संख्या कम-ज्यादा होती रहती है। हाइड्रोजन में कोई न्यूरॉन नहीं होता, लेकिन उसके आइसोटोप ड्यूटेरियम में एक न्यूरॉन होता है।

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