यूरोप की प्राचीन कथाओं में एक सफेद रंग के घोड़े ‘यूनिकॉर्न’ के किस्से सदियों से मशहूर हैं। इस घोड़े के सिर पर एक सींग होता है। प्राचीन ग्रीक कथाओं और मध्यकालीन युग में यूनिकॉर्न को शुद्धता और शान का प्रतीक माना जाता था। जंगलों में रहने वाले इस रहस्यमयी जानवर को सिर्फ कुंवारी कन्याएं ही पकड़ सकती थीं।
उसके सींग से जादुई पानी निकलता था, जिससे बीमार ठीक हो जाते थे। उन्नीसवीं सदी तक सभी इतिहासकार, हकीम, लेखक, कवि, प्रकृति शास्त्री और डॉक्टर्स भी इनके होने पर विश्वास करते थे। एशिया और अफ्रीका में भी इसके किस्से सुने जा सकते हैं। यूनिकॉर्न को देखने के बहुत कम लोग ही चश्मदीद हैं। इसलिए ये एक काल्पनिक चरित्र ज्यादा लगता है।
सबसे पहले पांचवीं सदी ईसापूर्व में एक यूनानी डॉक्टर ने इसकी चर्चा की थी। वे पर्शिया के दौरे पर गए थे और वहां उन्हें पता चला था कि भारत में इस तरह का जानवर होता है। पहली सदी ईसापूर्व में जूलियस सीजर ने लिखा था कि ऐसा एक जानवर दक्षिण जर्मनी के एर्कागेबिर्गे में रहता है। कहा जाता है कि एडवर्ड चतुर्थ, स्कॉटलैंड के जेम्स तृतीय, पीएट्रो डे मेडिसी, सातवें पोप क्लेमेंट, पोप जूलियस तृतीय और स्पेन के फिलिप द्वितीय के पास भी यूनिकॉर्न थे। 20 सितंबर 1483 में कुछ तीर्थ यात्रियों ने मिस्र के माउंट सिनाई के पास ऐसा ही एक जानवर देखा था।
लोडोविको डे वार्थेमा ने भी 1503 में सुना था कि साउदी अरब के मक्का शहर में दो यूनिकॉर्न हैं। एक घोड़े के बराबर था और उसका सींग 4.6 फीट का था। छोटे का सींग 16 इंच का था। ये यूनिकॉर्न इथोपिया के राजा ने मक्का के सुल्तान को भेंट किए थे। सोमालिया में भी ऐसा जानवर देखे जाने के किस्से हैं। 1630 के आसपास इथोपिया के जीसूट जेरोनिमो ने भी ऐसा जानवर देखने का दावा किया। 1669 में पुर्तगाल के सैनिकों ने भी इथोपिया में यूनिकॉर्न देखा। 1673 में ऑल्फ र्ट डापेर ने लिखा है कि ये कनाडा की सीमा पर पाए जाते हैं। इसके अलावा और भी कई लेखकों ने इनके बारे में अलग-अलग विवरण दिए हैं।
राज है गहरा
ईसापूर्व से लेकर उन्नीसवीं सदी तक कई देशों में एक सींग वाले घोड़े जैसे जानवर यूनिकॉर्न के किस्से लिखे गए, लेकिन आज तक कोई भी इनका वजूद साबित नहीं कर सका है।
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