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16 सितंबर 2011

श्राद्ध में कौओं को भोजन क्यों कराते हैं?

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श्राद्ध पक्ष पितरों को प्रसन्न करने का एक उत्सव है। यह वह अवसर होता है जब हम खीर-पुड़ी आदि पकवान बनाकर उसका भोग अपने पितरों को अर्पित करते हैं जिससे तृप्त होकर पितृ हमें आशीर्वाद देते हैं। श्राद्ध पक्ष से जुड़ी कई परंपराएं भी हमारे समाज में प्रचलित है। ऐसी ही परंपरा है जिसमें कौओं को आमंत्रित कर उन्हें श्राद्ध का भोजन खिलाया जाता है।

इसका एक कारण यह है कि हिन्दू पुराणों ने कौए को देवपुत्र माना है। यह मान्यता है कि इन्द्र के पुत्र जयंत ने ही सबसे पहले कौए का रूप धारण किया था। यह कथा त्रेता युग की है जब भगवान श्रीराम ने अवतार लिया और जयंत ने कौऐ का रूप धर कर माता सीता को घायल कर दिया था। तब भगवान श्रीराम ने तिनके से ब्रह्मास्त्र चलाकर जयंत की आंख फोड़ दी थी।

जब उसने अपने किए की माफी मांगी तब राम ने उसे यह वरदान दिया की कि तुम्हें अर्पित किया गया भोजन पितरों को मिलेगा। बस तभी से श्राद्ध में कौओं को भोजन कराने की परंपरा चल पड़ी है। दरअसल आपने गौर किया होगा कि कौआ काना यानि एक आंख वाला होता है। मतलब उसे एक ही आंख से दिखाई देता है। यहां हिन्दू मान्यताओं में पितरों की तुलना कौऐ से की गई है।

जिस प्रकार कौआ एक आंख से ही सभी को निष्पक्ष व समभाव से देखता है उसी प्रकार हम यह आशा करते हैं कि हमारे पितर भी हमें समभाव से देखते हुए हम पर अपनी कृपादृष्टि बनाए रखें। वे हमारी बुराइयों को भी उसी तरह स्वीकार करें जिस प्रकार अच्छाइयों को स्वीकारते हैं। यही कारण है कि श्राद्ध पक्ष में कौओं को ही पहले भोजन कराया जाता है।

2 टिप्‍पणियां:

  1. ----जयंत से पहले काक-भुशुन्ड थे वे भी कौवे थे ...जयंत पहला कौवा नहीं था...हाँ उसने कौवे का रूप रखा था...कुछ मूल कारण इस प्रकार हैं....

    --- सिर्फ कौए को ही नहीं सभी जीवों को भोजन कराने का विधान है। पितृ पक्ष में कौआ, कुत्ता, गौ और अन्य जीव-जंतुओं को भोजन कराया जाता है। यह इसलिए कि सर्वे भवंतु सुखीनः अर्थात् सब सुखी रहें।
    ---भगवान राम ने जयंत रूपी कौवे की एक आँख छीन ली थी और श्राप दिया था कि वर्ष भर में तुम्हें सिर्फ पंद्रह दिन ही स्वच्छ भोजन करने को मिलेगा, शेष दिन तुम गंदगी का भक्षण ही करोगे। इसीलिए सिर्फ पितृ पक्ष में ही कौए को अच्छा खाने को मिलता है शेष दिन उसे गंदगी का ही भक्षण करना पड़ता है। यह भारतीय जन- मानस की सर्वेन सुखिना भवन्तु ...पद्धति है और भगवान राम के बचनों पर श्रृद्धा
    --- कौए का काला रंग होता है जो राहू-केतू का रूप माना जाता है।
    राहू-केतू के कारण ही पितृदोष लगता है। इसलिए पितृ पक्ष में कौए को भोजन कराने से पितरों को शांति मिलती है और वे तृप्त होकर परलोक जाते हैं।

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