मकबूल ने चार एकड़ जमीन में कृषि विज्ञान केंद्र के सहयोग से मछली उत्पादन की खेती शुरू की। देखते ही देखते उनकी कमाई 80 रु.से बढ़कर 300 रु. प्रति किलो हो गई। आज मकबूल चार-चार कारों के मालिक है और राजौरी जैसे उग्रवाद के गढ़ में युवाओं को नफरत के हथियार छोड़ खेती के बूते आगे बढ़ने की दिशा दिखा रहे हैं।
नवाचारी किसानों के सम्मेलन में जयपुर आए मकबूल ने भास्कर के समक्ष अपने जज्बात रखे तो सुनने वालों के दिलो-दिमाग में मानो देशभक्ति का संचार हो गया। उन्होंने कहा कि वे कश्मीर से कन्याकुमारी तक फैले भारत देश से प्रेम करते हैं, लेकिन वहां युवाओं को भारत और अपनी जड़ों से तोड़ने के प्रयास अब भी जारी हैं। भावुक मन से रैना ने कहा कि वे भी मछली पालन शुरू नहीं करते तो आतंकवादी आज उनसे न जाने कितने बेकसूरों की हत्या करा चुके होते।
अब राजौरी के युवा भी उनको देखकर खेती में रुचि लेने लगे हैं। उन्होंने भी गंदे पानी व गोबर में मछली पैदा करने के बजाय 24 घंटे साफ पानी देने जैसा नवाचार अपनाकर मछली पैदा की तो आज चाईनीज कार्प, सिल्वर कार्प, ग्रास व कॉमन कार्प जैसी मछलियों से प्रति किलो 300 रुपए मिलने लगे हैं।
केले के डंठल कचरे से मैट, बैग और रस्सी बनाई:
तमिलनाडु के मदुरै क्षेत्र के मेलाकल गांव निवासी पी एम मुरुगेसन ने कचरे में फेंके जाने वाले केले के डंठलों से साइकिल व्हील व पैडल की मशीन बनाकर मैट, बैग, रस्सी, पेपर बनाने का काम किया, जिसके लिए उनको कई पुरस्कार मिल चुके हैं। पर्यावरण मित्र किसान के रूप में वे पूरे प्रदेश में अलग पहचान रखते हैं।
एक लीटर में शीशम, अरड़ू जैसे पेड़ लगाए:
सीकर जिले के दातारामगढ़ निवासी सूंडा राम ने मात्र एक लीटर पानी से शीशम, अरड़ू, नीम, देशी बबूल जैसे पेड़ विकसित करने का तरीका इजाद किया। उन्हें इसके लिए कई राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं। करीब 25 साल से एक लीटर में पेड़ तैयार कर रहे सूंडा राम का कहना है कि बारिश के समय खरपतवार व धरती के सुराख बंद कर वे पेड़ लगाते हैं, जिनको पूरी लाइफ में केवल एक लीटर पानी की जरूरत पड़ती है।
बांसों के बीच सब्जी उत्पादन:
मेघालय की तैलंग रानी ने बांस के जंगलों में सब्जी व चटनी, अचार उत्पादन के तरीके ईजाद किए। रानी ने कहा कि सर्दी के मौसम में वहां बांस को अलग ढंग से प्रिजर्व करके वहां फरमेंटेशन करते हैं, जिससे बांस के जंगलों के बीच भी सब्जी उत्पादन संभव होता है। उनकी बांस व सब्जी से तैयार आचार व चटनी की कई राज्यों में मांग है।
सफेदे से मिटाई दीमक:
सीकर जिले के दातारामगढ़ निवासी किसान भगवती देवी ने फसलों से दीमक से निजात दिलाने की तकनीकी विकसित की, जिसके लिए उनको राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है।उन्होंने खेत के चारों तरफ सफेदे की लकड़ियां गाड़ दी। दीमक के लिए सफेदे की लकड़ी सबसे मीठा आहार होती है। दीमकों ने खेतों में फसलें चट करना छोड़ दिया।
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