ये गोला सूरज भी हो सकता है। इसके अलावा छोटे-छोटे गोले बने हैं, जो तारे हो सकते हैं। इसमें किनारे की तरफ दो आर्क और बने हैं। ये मिल्की वे या इंद्रधनुष या फिर आकाशगंगा या फिर कोई और चीज हो सकती है। दूसरी तरफ का सुनहरा गोला इसमें नहीं है।
जर्मनी में नेबरा के पास मिटेलबर्ग पहाड़ पर यह डिस्क मिली थी। इसे कांस्य युग से जोड़ा जाता है। जिस दौर की ये है उस दौर की स्टाइल से ये मेल नहीं खाती, इसलिए इसे फर्जी भी समझा जाता था। फिर भी अब इसे सही मान लिया गया है। डिस्क के अलावा दो तस्वारें और कुछ अन्य सामग्री भी वहां मिली थीं। ये सब सामान पहाड़ पर मिला था, इसलिए यह भी अनुमान लगाया जाता है कि वहां कोई ऑब्जर्वेट्री रही होगी।
डिस्क को लेकर दूसरी थ्योरी भी दी जाती है। कुछ लोगों को लगता है कि साइड आर्क को नीचे रखें तो यह नाव हो सकती है और सुनहरा गोला सूरज। छोटे गोले तारे हैं और बीच में एक साथ बने सात गोले सेवन सिस्टर्स या फिर एम45 कहे जाने वाले तारे हैं। साइड के दोनों आर्क्स का एंगल भी साल में दो बार होने वाली खगोलिक घटना समर और विंटर सोल्सटाइस से मेल खाते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ बोचुम के प्रोफेसर वुल्फहार्ड ने ये एंगल नापा था। उन्होंने पाया कि मिटेलबर्ग पहाड़ से देखने पर गर्मी और सर्दी में सूरज इसी एंगल से क्षितिज की तरफ जाता है। इसलिए ये डिस्क एस्ट्रॉनॉमी में इस्तेमाल होती होगी।
राज है गहरा
1999 में खजाना तलाश रहे लोगों को जर्मनी में कांस्य युग के कुछ आइटम मिले थे। इसमें से एक थी नेबरा स्काय डिस्क। इसका क्या इस्तेमाल होता होगा ये आज तक समझ से परे है।
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