क्यों नहीं चेते पीएम साहब?
सुनील दत्त, मणिशंकर अय्यर और एमएस गिल ने बतौर खेलमंत्री प्रधानमंत्री को ये पत्र लिखे थे। इन पत्रों को एससी अग्रवाल ने आरटीआई आवेदन के जरिए मांगी गई जानकारी पर सार्वजनिक किया है। 2004 में आयोजन समिति के स्वरूप पर उस वक्त के खेल मंत्री सुनील दत्त ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा था। इसमें उन्होंने आयोजन समिति के मुखिया के पद पर कलमाडी की नियुक्ति के भारतीय ओलिंपिक संघ के प्रस्ताव पर हैरानी जताई थी। दत्त के पत्र पर यह टिप्पणी लिखी गई थी कि ‘प्रधानमंत्री ने देख लिया है’। इसके बाद प्रधानमंत्री ने सुनील दत्त को रिसीविंग भेजी थी।
सुनील दत्त के बाद खेल मंत्री बने मणिशंकर अय्यर ने प्रधानमंत्री को लिखे अपने पत्रों में आयोजन समिति के खर्चो पर सवाल उठाए थे। 5,000 डॉलर प्रति दिन की दर पर कंसल्टेंट्स को नियुक्ति और कॉमनवेल्थ गेम्स फेडरेशन के सीईओ माइक हूपर के लिए दो करोड़ रुपए का फार्म हाउस और फस्र्ट क्लास का मासिक हवाई टिकट मुहैया कराने पर उन्होंने आपत्ति उठाई थी। उनके अनुसार, आयोजन समिति के अध्यक्ष के पास ‘तानाशाही शक्तियां’ थीं क्योंकि ऐसा कोई आदमी नहीं था जो किसी विकल्प के लिए दबाव डाल पाता।
अय्यर ने एक और पत्र में कहा था कि कॉमनवेल्थ गेम्स के आयोजन पर खर्च 20,000 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है। हैदराबाद में हुए सैन्य खेलों पर सिर्फ 200 करोड़ रुपए खर्च हुए जबकि कॉमनवेल्थ गेम्स की तुलना में तीन-चौथाई खिलाड़ियों ने इसमें हिस्सा लिया था। 2008 में खेल मंत्री बने एमएस गिल ने प्रधानमंत्री को 26 सितंबर 2009 को लिखे अपने पत्र में कहा था कि आयोजन समिति की कार्यकारी बोर्ड की बैठक ही नहीं होती।
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