कारगिल युद्ध में 12 साल पहले अपने प्राणों की आहुति देने वाले वायु सेना के जांबाज ऑफिसर और कोटा के सपूत अजय आहूजा की देश के लिए दी गई शहादत को यूआईटी, नगर निगम और जिला प्रशासन भूल बैठा। स्टेशन क्षेत्र में माला रोड पर अजय आहूजा की प्रतिमा को कारगिल विजय दिवस के दिन मंगलवार को कोई भी पुष्पांजलि अर्पित करने नहीं आया। वहां नगर विकास न्यास द्वारा बनाए गए अजय आहूजा पार्क में इस शहीद की प्रतिमा लगी हुई है।
स्थिति यह है कि पार्क भी दुर्दशा का शिकार है और शहीद अजय आहूजा की प्रतिमा के सिर पर लगी कैप भी गायब हो चुकी है। शाम को पार्क में तफरीह करने आए बुजर्गो का कहना था कि देश के लिए कुर्बानी देने वाले शहीद की शहादत से युवा पीढ़ी क्या प्रेरणा लेगी, यह सोचने का विषय है। शाम 7 बजे भास्कर संवाददाता और फोटो जर्नलिस्ट अजय आहूजा पार्क पहुंचे तो शहीद की प्रतिमा पर एक फूल भी चढ़ा हुआ नजर नहीं आ रहा था। पार्क के सामने एक मकान में रहने वाले परिवार के युवक करनजीत सिंह का कहना था कि सुबह से शाम तक उसने किसी भी व्यक्ति को शहीद अजय आहूजा की प्रतिमा पर पुष्प चढ़ाते नहीं देखा। प्रतिमा की सफाई हुए भी कई दिन बीत चुके हैं। संवाददाता ने जब शहीद की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित किए तो उस दौरान वहां पहुंचे कुछ बुजर्गो ने भी पार्क में प्रतिमा पर पुष्प चढ़ाए।
ऐसे खोया कोटा ने अपना लाल
कारगिल युद्ध जब शुरू ही हुआ था तो वायु सेना में स्क्र्वाडन लीडर 36 वर्षीय अजय आहूजा और उनके साथ एक अन्य अधिकारी सेना का लड़ाकू विमान लेकर 27 मई 1999 में पाकिस्तानी सैनिकों से दो-दो हाथ करने निकले थे। गलती से उनका विमान पाकिस्तान की सीमा में चला गया। पाकिस्तानी सैनिकों ने उनकी घेराबंदी कर ली थी। अजय आहूजा ने मुकाबला किया लेकिन वे पाकिस्तानी सैनिकों की गोलियों से शहीद हो गए।
देशभक्त नौजवान था वह
शहीद अजय आहूजा का मकान माला रोड स्थित जिस रेलवे सोसायटी कालोनी में है, उनके पड़ौस में रहने वाले रेलवे सेवा से रिटायर्ड अधिकारी अशोक चावरेकर का कहना था कि देश के लिए बलिदान हुए शहीद को इस शहर द्वारा भूल जाना बहुत बड़ी विडंबना है। चावरेकर के मुताबिक अजय आहूजा उनके सामने छोटे से बड़ा हुआ था। उसकी बातों और विचारों में देशभक्ति झलकती थी। शहीद अजय आहूजा के पिता पुरुषोत्तम लाल आहूजा का दो माह पूर्व ही निधन हो चुका है। छोटे भाई विजय आहूजा जो कोटा थर्मल में इंजीनियर थे, वे आजकल झालावाड़ में सेवारत है। मां उनके साथ ही रहती है। शहीद की धर्मपत्नी अपने बच्चे के साथ दिल्ली रहती है
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