आपका-अख्तर खान

हमें चाहने वाले मित्र

03 जुलाई 2011

पीपल पूर्णिमा की महिमा

पीपल पूर्णिमा की महिमा
वै शाख शुक्ल पूर्णिमा को पीपल पूनम, बुद्धपूर्णिमा भी कहा जाता है, इस साल यह 17 मई मंगलवार को मनाई जाएगी। यह गौतम बुद्ध की जयंती भी है और उनका निर्वाण दिवस भी।

इसी दिन भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी। हिंदू धर्मावलंबियों के लिए बुद्ध विष्णु के नौवें अवतार हैं। अत: हिंदूओं के लिए भी यह दिन पवित्र माना जाता है। इसी कारण बिहार स्थित बोधगया नामक स्थान हिंदू व बौद्ध धर्मावलंबियों के पवित्र तीर्थ स्थान हैं।

इसी दिन को पीपल पूर्णिमा के रूप में भी मनाया जाता है। पीपल को संस्कृत में अश्वत्थ कहा जाता है। पुराणों में पीपल (अश्वत्थ) का बड़ा महžव बताया गया है।

मूले विष्णु: स्थितो नित्यं स्कन्धे केशव एव च।
नारायणस्तु शारवासु पत्रेषु भगवान् हरि:।।
फलेùच्युतो न संदेह: सर्वदेवै: समन्वित:।।
स एव विष्णुदु्रम एव मूर्तौ महात्मभि: सेवित: पुण्यमूल:।
यस्याश्रय: पापसहस्त्रहंता भवेन्नृणां कामदुधो गुणाढ्य:।।

अर्थात् पीपल की जड़ में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण पत्तों में भगवान हरि और फल में सब देवताओं से युक्त अच्युत सदा निवास करते हैं। यह वृक्ष मूर्तिमान् श्री विष्णु स्वरूप है। महात्मा पुरूष इस वृक्ष के पुण्यमय मूल की सेवा करते हैं। इसका गुणों से युक्त और कामनादायक आश्रय मनुष्यों के हजारों पापों का नाश करने वाला है।

गीता में भगवान श्री कृष्ण स्वयं कहते हैं-
"अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणाम्" अर्थात् मैं सब वृक्षों में पीपल का वृक्ष हूं। इस कथन से अपने स्वरूप को पीपल के वृक्ष के समान कहा है।
"पk पुराण" के अनुसार पीपल को प्रणाम करने और उसकी परिक्रमा करने से आयु लंबी होती है। जो व्यक्ति पीपल को पानी देता है वह सभी पापों से छूटकर स्वर्ग प्राप्त करता है। पीपल में पितरों का वास कहा गया है। महिलाएं, पुत्र, सौभाग्य, आयु के लिए पीपल की पूजा, अर्चना परिक्रमा करती हैं। कामना पूर्ति के लिए पीपल के तने पर सूत (मौली) बंधन किया जाता है। पीपल की जड़ में शनिवार को जल चढ़ाने और दीपक जलाने से अनेक प्रकार के कष्टों का निवारण होता है।

शनि की जब जिसकी साढ़े साती दशा होती है तो वे पीपल के वृक्ष का पूजन और परिक्रमा करते हैं। भगवान कृष्ण के अनुसार शनि की छाया इस वृक्ष पर रहती है। इसकी छाया यज्ञ, हवन, पूजापाठ, पुराण, कथा, आदि के लिए श्रेष्ठ मानी गई है। पीपल के पत्तों से शुभ कार्य में वंदनवार भी बनाई जाती है।

धार्मिक श्रद्धालु इसे मंदिर परिसर में अवश्य लगाते हैं। सूर्योदय से पूर्व पीपल पर दरिद्रता का अधिकार होता है और सूर्योदय के बाद लक्ष्मी का अधिकार होता है। इसलिए सूर्योदय से पूर्व इसकी पूजा करने का निषेध किया गया है। इस वृक्ष का काटना इसको नष्ट करना ब्रह्महत्या के पाप के समान कहा गया है। वैज्ञानिक दृष्टि से पीपल अधिक ऑक्सीजन देने वाला एक अनोखा वृक्ष है। औषधीय गुण होने के कारण रोगनाशक भी है।

कहते हैं कि चाणक्य के समय में सर्प विष के खतरे को निष्प्रभावित करने के उद्देश्य से जगह - जगह पर पीपल के पत्ते रखे जाते थे। पानी को शुद्ध करने के लिए जलपात्रों में अथवा जलाशयों में ताजे पीपल के पत्ते डालने की प्रथा अति प्राचीन है। कुएं के समीप पीपल का उगना आज भी शुभ माना जाता है।

ज्योतिषीय दृष्टिकोण से
यदि किसी कन्या की कुंडली में विधवा योग (वैधव्य योग) हो तो पीपल वृक्ष या घट (कुम्भ) इनमें से एक के साथ शुभ ग्रह स्थिति में शुभलग्न में विवाह करा कर दीर्घायुष्मान् वर के साथ विवाह कराने से वैधव्य योग समाप्त हो जाता। यदि कन्या के ग्रह वर (लड़के) से अधिक बली हो तो वर की आयुष्य की हानि का भय होता है, तथा अच्युत, अनंत, आयुष्मान, शाश्वत नित्य सर्वोपरि भगवान विष्णु या पीपल के साथ विवाह कराने के बाद दुर्बल ग्रह प्राप्त वर के साथ विवाह कराया जाता है।

अनिष्ट फुलकारिका शक्ति का भगवान विष्णु में अंतर्भाव हो जाने से कन्या सौभाग्यशाली ही रहती है। पीपल का इच्छापूर्ति धनागमन संतान प्राप्ति हेतु तांत्रिक यंत्र के रूप में भी प्रयोग होता है। सहस्त्रवार चक्र जाग्रत करने हेतु भी पीपल का महत्व अक्षुण्ण है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...