तुम्हें क्या बताऊं ....
मेरे दिल के
नासूर हुए
इन जख्मों को .
अगर
इन जख्मों को देखो
और फिर
मेरे अपनों को देखो
तो कहीं
मातम नहीं है
दुनिया और भी अजीब है
दुनिया की
थोड़ी भी
रोंनाक कम नहीं है
बस
कुछ
इस तरह की ही
जख्म मुझे मिले हैं
जिनका वक्त भी
आज तक मरहम नहीं है
सच तो यही है
चाहे जो भी हो
दुनिया तो चलती ही है
अपने जो बन कर रहते हैं
अपने होने का
दावा करते हैं
कब्र में
छोड़ते हैं
चंद रोज़ रोते हैं
और फिर
सब कुछ भूल कर
अपने रोज़ के कामों में
लग जाते हैं
बस इंसान की
यही तो
जिंदगी है
जो कहने को
अनमोल है
लेकिन
रिश्तों में
कोई मोल नहीं हैं .................अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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